श्री गणेशजी

ज्योतिष

मेरा गाँव तोगावास

आयुर्वेदिक घरेलु उपाय

तंत्र, मंत्र, यन्त्र,साधना

माँ दुर्गा

वास्तु शास्त्र

मेरे फ़ोटो एल्बम

राजस्थानी प्रेम कथाएँ

ज्ञान गंगा की धारा

श्री शिव

धार्मिक कथाएं

हास्य पोथी

फल खाएं सेहत पायें

राजपूत और इतिहास

श्री हनुमानजी

लोकदेवता

व्रत और त्योहार

सभी खुलासे एक ही जगह

चाणक्य

ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों,नक्षत्रों आदि की गति,परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।ज्योतिषशास्त्र लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर रहा हूँ।

ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी - कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या - क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क - वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र।

ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति "विद" धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।

ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।

पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर''ज्योतिषामयनंयक्षुरू''ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर '' प्रभु-कृपा ''भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। 'दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।

दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचेभयात/भभोतजैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास

Friday 27 February 2015

ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय



ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय
ज्योतिष शास्त्र क्या है ?
सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिषशास्त्र  लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर  रहा हूँ।  

ज्योतिषशास्त्र व ज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं , वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों  में   ज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी - कभार  ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच होती है ? इस सच  के साथ क्या कोई संपर्क ज्योतिष शास्त्र का है ? ज्योतिषियों की भविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ? ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या - क्या तर्क देते हैं  ? यह तर्क कितना सही है  ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं ? इन सब बातों  की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क - वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैं ज्योतिषशास्त्र।  

ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति "विद" धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है । ज्योतिष शास्त्र तारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।

ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है। 
पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर ''ज्योतिषामयनंयक्षुरू'' ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर '' प्रभु-कृपा '' भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है। 
मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि तत्व तो एक ही है। 'दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो, पशु-पक्षी, वनस्पतियां, नदी, पहाड़ कुछ भी हो, गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।

दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव, सामाजिक त्योहार, महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।

समुद्र में आने वाला ज्वार भाटा चन्द्रमा की कलाओं के अनुसार घटता बढ़ता है |
ज्योतिष शास्त्र के तत्वों से पूर्णतया परिचित हुए बिना विज्ञान भी असमय वर्षा का आयोजन या निवारण नहीं कर सकता। वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्यों को ज्ञात कर जब चंद्रमा जलचर नक्षत्रों का भोग करता है तभी वृष्टि का आयोजन कर सकते हैं। वाराही संहिता में भी ऐसे सिद्धान्त आए हैं जिनके द्वारा जलचर चान्द्र नक्षत्रों के दिनों में वर्षा का आयोजन किया जा सकता है। प्राचीन मंत्र शास्त्र में जो वृष्टि के आयोजन व निवारण की प्रक्रिया बताई गई है उसमें जलचर नक्षत्रों को आलोडि़त करने का विधान है।

सारांश यह कि वैज्ञानिक जलचर नक्षत्रों के तत्वों को जानकर जलचर नक्षत्रों के दिनों में उन तत्वों का संयोजन कर असमय ही वृष्टि कार्य संपन्न कर लेते हैं। इसी प्रकार वृष्टि का निवारण जलचर चंद्रमा के जलीय परमाणुओं के विघटन द्वारा संपन्न किया जा सकता है। प्राचीन ज्योतिष के अन्यतम अंग संहिता शास्त्र में इस प्रकार की चर्चा भी आई है। एक प्राचीन गंरथ भद्रभाहु संहिता के शुक्राचार अध्याय में शुक्र की गति के अध्ययन द्वारा वृष्टि का निवारण किया गया है। अतएव यह मानना पड़ेगा कि ज्योतिष तत्वों की जानकारी के बिना कृषि कर्म सम्यक्तया संपन्न नहीं किया जा सकता।

जहाज के कप्तान को ज्योतिष की नित्य आवश्यकता होती है। क्योंकि वे ज्योतिष के द्वारा ही समुद्र में जहाज की स्थिति का पता लगाते हैं। घड़ी के अभाव में सूर्य, चंद्र व नक्षत्र पिंडों को देखकर आसानी से समय का पता लगाया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के अभाव में लम्बी यात्रा तय करना निरापद नहीं, क्योंकि अक्षांश - देशांतर के द्वारा ही उस स्थान की स्थिति और उसकी दिशा आदि का निर्णय किया जाता है। जहां की सीमा पैमाइश द्वारा निश्चित नहीं की जा सकती, वहां ज्योतिष के द्वारा प्रतिपादित अक्षांश और देशांतर के आधार पर सीमाएं निश्चित की गई हैं।

भूगोल का ज्ञान भी इस शास्त्र के ज्ञान के बिना अधूरा होगा। अन्वेषण कार्य को संपन्न करना है तो वह भी ज्योतिष के ज्ञान के बिना संभव नहीं है। आज तक जितने भी नवीन अन्वेषक हुए हैं वे या तो स्वतंत्र ज्योतिषी होते थे अथवा अपने साथ किसी ज्योतिषी को रखते थे। जहां आधुनिक वैज्ञानिक यंत्र कार्य नहीं करते हैं, अधिक गर्मी या अधिक सर्दी के कारण उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है, वहां सूर्य, चंद्रादि नक्षत्रों के ज्ञान द्वारा देश का बोध सरलता पूर्वक किया जा सकता है। यदि कहा जाय कि पहाड़ की ऊंचाई व नदी की गहराई का ज्ञान रेखा गणित द्वारा किया जाता है तो यह जानें कि रेखा गणित भी ज्योतिष का अभिन्न अंग है। प्राचीन ज्योतिर्विदों ने रेखा गणित के मुख्य सिद्धान्तों का निरूपण ईशवी सन 5वीं व 6वीं शताब्दी में कर दिया था।

इतिहास को भी ज्योतिष ने बड़ी सहायता पहुंचाई है। किसी घटना की तिथि का पता अन्य साधनों द्वारा नहीं लग सकता, जबकि ज्योतिष द्वारा सहज में लगाया जा सकता है। यदि ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान नहीं होता तो वेद की प्राचीनता कदापि सिद्ध नहीं होती। लोकमान्य तिलक ने वेदों में प्रतिपादित नक्षत्र, अयन और ऋतु आदि के आधार पर ही वेदों का समय निर्धारित किया है। सूर्य और चंद्र ग्रहणों के आधार पर अनेक प्राचीन ऐतिहासिक तिथियां क्रमबद्ध की जा सकती हैं। भूगर्भ से प्राप्त विभिन्न वस्तुओं का काल ज्योतिष शास्त्र के द्वारा जितनी सरलता और प्रामाणिकता के साथ निश्चित किया जा सकता है, उतना अन्य शास्त्रों के द्वारा नहीं। पुरातत्व की वस्तुओं के यथार्थ समय को जानने के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता है।

सृष्टि के रहस्य का पता भी ज्योतिष से ही लगता है। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में सृष्टि के रहस्य की छानबीन करने के लिए ज्योतिष शास्त्र का उपयोग किया जा रहा है। इसी कारण सिद्धान्त ज्योतिष के ग्रंथों में सृष्टि का विवेचन रहता है। प्रकृति के अणु-अणु का रहस्य ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति सृष्टि के रहस्य को ज्ञात कर अपने कार्यों का संपादन करे। जड़-चेतन सभी पदार्थों की आयु, आकार-प्रकार, उपयोगिता एवं भेद-प्रभेद का जितना सुन्दर विज्ञानसम्मत कथन ज्योतिष शास्त्र में है, उतना अन्य ग्रंथों में नहीं।

इतना ही नहीं ज्योतिष विज्ञान के बिना औषधियों का निर्माण यथासमय संपन्न नहीं किया जा सकता है। कारण स्पष्ट है कि ग्रहों के तत्व और स्वभाव को जानकर उन्हीं के अनुसार उसी तत्व और स्वभाव वाली दवा विशेष गुणकारी होती है। जो इस शास्त्र के ज्ञान से अपरिचित रहते हैं वे सुन्दर व अपूर्व गुणकारी दवाओं का निर्माण नहीं कर सकते हैं।

ज्योतिष शास्त्र के द्वारा रोगी की चेष्टा को अवगत कर रोग के बारे में जाना जा सकता है। संवेग रंगशाला नामक ज्योतिष ग्रंथ में रोगी का रोग जानने के अनेक नियमों पर चर्चा की गई है। अत: जो चिकित्सक ज्योतिष तत्वों को जानकर चिकित्सा कार्य को संपन्न करता है, वह अपने इस कार्य में ज्यादा सफल रहता है।

साधारण व्यक्ति भी ज्योतिष शास्त्र के सम्यक ज्ञान से अनेक रोगों से बच सकता है। क्योंकि अधिकांश रोग सूर्य और चंद्रमा के विशेष प्रभावों से उत्पन्न होते हैं। फायलेरिया रोग चंद्रमा के प्रभाव के कारण ही एकादशी व अमावस्या को बढ़ता है।

ज्योतिर्विदों का कथन है कि जिस प्रकार चंद्रमा समुद्र के जल में उथल-पुथल मचा सकता है, उसी प्रकार शरीर के रुधिर प्रवाह में भी अपना प्रभाव डालकर निर्बल मनुष्यों को रोगी बना देता है। अतएव ज्योतिष द्वारा चंद्रमा के तत्वों को अवगत कर एकादशी और अमावस्या को वैसे तत्वों वाले पदार्थों के सेवन से बचने पर फायलेरिया रोग से छुटकारा मिल सकता है। इस प्रकार निर्बल मनुष्य रोगों के आक्रमण से अपनी रक्षा कर सकता है।

ज्योतिष शास्त्र की सबसे बड़ी उपादेयता यही है कि वह समस्त मानव जीवन के प्रत्येक प्रत्यक्ष और परोक्ष रहस्यों का विवेचन करता है और प्रतीकों द्वारा समस्त जीवन को प्रत्यक्ष रूप में उस प्रकार प्रकट करता है जिस प्रकार दीपक अंधकार में रखी हुई वस्तु को दिखलाता है। मानव का कोई भी व्यावहारिक कार्य इस शास्त्र के ज्ञान के बिना नहीं चल सकता है।


छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त होता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठेय यज्ञ के उचित काल का संशोधन करना है। यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि सब विषय उलट-पुलट हो जाएँ।

ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मनुष्य आकाशीय-चमत्कारों से परिचित होता है। फलतः वह जनसाधारण को सूर्योदय, सूर्यास्त, चन्द्र-सूर्य ग्रहण, ग्रहों की स्थिति, ग्रहों की युति, ग्रह युद्ध, चन्द्र श्रृगान्नति, ऋतु परिवर्तन, अयन एवं मौसम के बारे में सही-सही व महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है। इसलिए ज्योतिष विद्या का बड़ा महत्व है।

महर्षि वशिष्ठ का कहना है कि प्रत्येक ब्राह्मण को निष्कारण पुण्यदायी इस रहस्यमय विद्या का भली-भाँति अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके ज्ञान से धर्म-अर्थ-मोक्ष और अग्रगण्य यश की प्राप्ति होती है। एक अन्य ऋषि के अनुसार ज्योतिष के दुर्गम्य भाग्यचक्र को पहचान पाना बहुत कठिन है परन्तु जो जान लेते हैं, वे इस लोक से सुख-सम्पन्नता व प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं तथा मृत्यु के उपरान्त स्वर्ग-लोक को शोभित करते हैं।
ज्योतिष वास्तव में संभावनाओं का शास्त्र है। सारावली के अनुसार इस शास्त्र का सही ज्ञान मनुष्य के धन अर्जित करने में बड़ा सहायक होता है क्योंकि ज्योतिष जब शुभ समय बताता है तो किसी भी कार्य में हाथ डालने पर सफलता की प्राप्ति होती है इसके विपरीत स्थिति होने पर व्यक्ति उस कार्य में हाथ नहीं डालता।

ज्योतिष ऐसा दिलचस्प विज्ञान है, जो जीवन की अनजान राहों में मित्रों और शुभचिन्तकों की श्रृंखला खड़ी कर देता है। इतना ही नहीं इसके अध्ययन से व्यक्ति को धन, यश व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। इस शास्त्र के अध्ययन से शूद्र व्यक्ति भी परम पूजनीय पद को प्राप्त कर जाता है। वृहदसंहिता में वराहमिहिर ने तो यहां तक कहा है कि यदि व्यक्ति अपवित्र, शूद्र या मलेच्छ हो अथवा यवन भी हो, तो इस शास्त्र के विधिवत अध्ययन से ऋषि के समान पूज्य, आदर व श्रद्धा का पात्र बन जाता है।

ज्योतिष सूचना व संभावनाओं का शास्त्र है। ज्योतिष गणना के अनुसार अष्टमी व पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार-भाटे का समय निश्चित किया जाता है। वैज्ञानिक चन्द्र तिथियों व नक्षत्रों का प्रयोग अब कृषि में करने लगे हैं। ज्योतिष शास्त्र भविष्य में होने वाली दुर्घटनाओं व कठिनाइयों के प्रति मनुष्य को सावधान कर देता है। रोग निदान में भी ज्योतिष का बड़ा योगदान है।

दैनिक जीवन में हम देखते हैं कि जहां बड़े-बड़े चिकित्सक असफल हो जाते हैं, डॉक्टर थककर बीमारी व मरीज से निराश हो जाते हैं वही मन्त्र-आशीर्वाद, प्रार्थनाएँ, टोटके व अनुष्ठान काम कर जाते हैं।
भारतीय ज्‍योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्‍यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा।
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों के योगों का बड़ा महत्व है। पराशर से लेकर जैमनी तक सभी ने ग्रह योग को ज्योतिष फलदेश का आधार माना है।
भारतीय ज्‍योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्‍यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा।

ज्योतिषशास्त्र का वैज्ञानिक-दृष्टिकोण. यह सत्य है जब तक ज्योतिष और ग्रहों के तथाकथित असर साबित नहीं हो जाते, कम से कम तब तक तो ज्योतिष विद्या एक अप्रायोगिक-विश्वासही है, लेकिन सिर्फ़ यही आधार ज्योतिष को विज्ञान नहीं ..
अपने भविष्य को जानने की इच्छा सभी के मन में रहती है और इसे जानने का एक मात्र साधन ज्योतिषशास्त्र है। ज्योतिषशास्त्र के कई भाग हैं जिनमें वैदिक ज्योतिष को सबसे प्राचीन माना जाता है।

इस ज्योतिष विद्या का नाम वैदिक ज्योतिष इसलिए पड़ा है क्योंकि इसकी उत्पत्ति वेदों से हुई है। वेदों की संख्या चार है जिनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं। यजुर्वेद में 44 और अथर्ववेद में 162 श्लोक मिलते हैं।

इतिहासकारों में वैदिक काल को लेकर बड़ा मतांतर है। मैक्समूलर इसे महज 1200 ई. पू. से 600 ई. पू. का मानते हैं। जबकि श्री अविनाश चन्द्र दास तथा पावगी का मत है कि वैदिक काल इससे काफी प्राचीन है। इस मातांतर के बाबजूद ऐसी धारणा है कि वैदिक काल से पहले ही हमारे ऋषियों को ज्योतिष की जानकारी मिल चुकी थी। वे काल गणना और शुभ और अशुभ समय का निर्धारण करना सीख चुके थे।

नारद पुराण के अनुसार ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान ब्रह्मा से नारद को मिला। अन्य ऋषियों तक यह ज्ञान कैसे पहुंचा इसका उल्लेख इस पुराण में नहीं है। इस ज्ञान के कारण नारद देवताओं और असुरों में पूजनीय थे। 8300 ई. पू. से 3000 ई. पू. का समय ज्योतिषशास्त्र का स्वर्ण काल माना जाता है। इस दौरान ज्योतिषशास्त्र पर कई महत्वपूर्ण शोध हुए। इस काल के अंत तक ज्योतिषशास्त्र वैज्ञानिक तौर पर विकसित हो चुका था।

वेदों का अंग होने के कारण इस समय ज्योतिषशास्त्र को वेदांग के नाम से जाना जाता था। इस काल में 18 ऋषियों ने ज्योतिषशास्त्र को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन अठारह ऋषियों के नाम हैं सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर कश्यप, नारद, गर्ग, मरिची, मनु, अंगीरा, पुलस्य, लोमश, चवन, यवन, भृगु, शौनक्य।

ऐसी मान्यता है कि संसार में पहली बार ज्योतिष विद्या द्वारा भविष्य कथन करने वाले भृगु ऋषि थे। इन्होंने गणेश जी की सहायता से 50,0000 अनुमानित कुंडलियों का निर्माण किया। परंतु महर्षि भृगु द्वारा रचित ग्रंथ का कुछ अंश ही अपलब्ध है।

अपने भविष्य को जानने की इच्छा सभी के मन में रहती है और इसे जानने का एक मात्र साधनज्योतिषशास्त्र है। ज्योतिषशास्त्र के कई भाग हैं जिनमें वैदिक ज्योतिष को सबसे प्राचीन माना जाता है।

आजकल कालसर्प और ज्योतिष शास्त्र के बारे में अनेक भली-बुरी बाते समाज में फैली हुई है। इसके जिम्मेदार है खुद यजमान तथा जातक. इसका कारण है यजमान को खुद के उपर विश्वास न होना। आजकल हरएक को आगे जाने की तथा प्रगती की चाह है। वह दुसरो से आगे जाने की इर्षा में जिंदगी की दौड में आगे भागता है। इस भागदौड में वह काफी थक जाता है। परंतु इस थकान का कारण है ज्योतिष शास्त्र का आधा-अधुरा ज्ञान। ऐसे अधा-अधुरा ज्ञान रखनेवाले यजमानों को निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण जानकारी तथा सुचना -

1) ज्योतिष का सही अर्थ क्या है? ज्योतिष का वास्तविक अर्थ और जानकारी लोगोंको बिलकुलही मालूम नही रहती। इसीलिए पहले ज्योतिष का अर्थ समझना अत्यावश्यक है। ज्योति और ईष इन्हीं दो शब्दोंसे ज्योतिष शब्द निर्माण हुआ है। ज्योति मतलब प्रकाश और ईष मतलब ईश्वरी संकेत. ज्योतिष का मतलब है किसी परेशानी तथा कठनाईयोंका स्पष्टीकरण करनेवाली पध्दत। (उदाहरणार्थ सोनोग्राफी, एक्स-रे, सिटी स्कॅन से हमारे शरीर में रहनेवाली कठानाईंया/व्यंग दिखाती है उसी प्रकार ज्योतिष यजमान के आयुष्य में हो रही कठनाईंयोंका निदान करता है।)

2) जैसे बीमार होने पर डाक्टर उपाय बताते है उसी प्रकार ज्योतिषी भी उपाय सुझाते है। ज्योतिष शास्त्र में तीन प्रकार से उपचार किये जाते है -

(अ) दैवी आराधना वा उपासना, धार्मिक विधी वगैरे,
(ब) जाप व ताप, क) रत्न-पत्थर और मंत्र
(रत्न-पत्थर और यंत्र का असर काफी देरी से दिखाई देता है। आजकल TV तथा वर्तमान विज्ञानो द्वारा सामान्य जनता को फसाया जाता है। दुर्दैव यह है की सामान्य जनता इसकी शिकार हो जाती है।)

3) इस जगत में केवल भगवान और सच्चा गुरु ही अपका भाग्य बदल सकते है। आजकल TV पर 101% भाग्य बदल देने के दावे किये जाते है जो जादातर झुठेही होते है। ऐसे दावा करनेवाले व्यक्ती शहरों-गावों में भटकते रहते है। जिनका खुदका ठिकाना नहीं, जिनके ज्योतिष ज्ञान के बारे में हमे पता नही ऐसे लोगोपर कितना भरोसा किया जाये ये हरएक व्यक्तीने अपने सोच के अनुसार सोचना चाहिए। जिनकी दुकान एक जगह पर चलती नहीं है वही गांव-गांव भटकते फिरते है। ऐसे लोगोंको पुछना चाहिए की आपकेही भाग्य में ऐसे भटकने का योग क्यों है? क्यों के एक बार किसीसे फसाया जाने के बाद में चिल्लाने का कोई मतलब नहीं है। पानी और सोना कभी मनुष्य के पास नहीं आता उलटा हमें ही उनके पास जाना पडता है।

4) नियम यें है की बाजार से खरीदारी करते वक्त हम अपनी बुध्दी का उपयोग करके खरीदारी करते है ताकी हमें कोई फसा न सके। परंतु धार्मिक तथा ज्योतिष के विषय में अपनी बुध्दी का इस्तमाल न करते हुए लोग ज्योतिष तथा धार्मिक कांडो में फस जाते है।

5) हरएक ब्राम्हण या पंडित को ज्योतिष समजता है ऐसी एक गलत फैमी है।
उदाहरण अगर आपको १०० पंडीत पत्रिका देखनेवाले मिल जाय तो उनमेंसे ६० लोगोंको थोडी बहुत जानकारी होती है। ३० लोगोंको जरा ज्यादा जानकारी होती है। तथा केवल १० लोगोंको बहुत ज्यादा जानकारी होती है। (मेरे अनुसार ये 60 लोग कंपाऊंडर, 30 लोग एमबीबीएस डाक्टर और बचे 10 लोग एमडी या एमएस होते है) पितल और सोना दोनो का रंग पिलाही होता है परंतु ज्ञानी को ही उन दोनों मे जो फरक है वह नजर आता है।

6) जिन्हें हम कंपाऊंडर कहते वही लोग शादी तय करते वक्त जन्मकुंडलीमें कई तरह के दोष निकालते है जसे मंगलीक, नाडी दोष, गुण दोष, 4,8,12 ग्रहस्थानो में गुरुबल इत्यादी दोष निकालकर सामान्य लोगोंको परेशान करते है। यह सब लोग यह सब भोंदूबाजी कैसे सहेन कर जाते है यही हमारे सामने बडा प्रश्न चिन्ह है। डाक्टर की गलत इलाजों की वजहो से रोगी की जान जा सकती है उसी नियमानुसार ज्योतिष्य जगत का भी यही अनुभव है।

7) इस संसार में कोई भी १००% भविष्य बता नही सकता यही पहला नियम है। जसे सदह्रुदयी डाक्टर अनेक मरीज को बचाने के लिए जीजान लगा देता है उसी प्रकार असली ज्योतिषी अपने अनुभव, तर्क और दैवी उपासना द्वारा जातक के प्रश्न के उत्तर (उपाय़) के नजदीक जाने का प्रयत्न करता है। किसी की जन्मपत्री देखते वक्त मुख्य दो चीजे देखी जाती है -
अ) कोई घटना घटने वाली है की नहीं यह पहले देखा जाता है।
ब) अगर घटना घडनेवाली है तो कब और कहा घटेगी यह देखा जाता है।


ज्योतिष शास्त्र
ज्योतिष सही है या गलत ? विज्ञान है या अंधविश्वास ? यह सिर्फ तर्कों से सिद्ध नहीं की जा सकती। हर मुददे में पक्ष और विपक्ष दोनो के पास बडे बडे तर्क होते हैं। ज्योतिष को विज्ञान सिद्ध कर पाने में भी अभी तक पक्ष के लोगों को सफलता नहीं मिल पायी है, इसलिए इनकी बात भी लोग नहीं सुनते। ज्योतिष को विज्ञान न सिद्ध कर पाने में भी अभी तक विपक्ष के लोगों को कोई सफलता नहीं मिल पायी है। लोग उनकी बातें भला क्यों सुनेंगे ? लोगों का मानना है कि ज्योतिष जैसे विषय पर या ग्रह नक्षत्रों पर विश्वास करनेवाले आलसी , निकम्मे और निठल्ले हुआ करते हैं। पर मैं नहीं मानता, मैं मानता हूं कि एक जिम्मेदार व्यक्ति को ही भविष्य की चिंता होती है। हमारी कामवाली का युवा बेटा अपनी मां से जिद करके मोबाइल खरीदवाता है , अपने पिता के द्वारा खरीदे गए सेकंड हैंड मोटरसाइकिल पर बैठकर घूमता फिरता है। उसे भविष्य की कोई चिंता नहीं , क्यूंकि न सिर्फ तीन वक्त का खाना ही, वरन् भविष्य की छोटी मोटी हर जरूरत को वह दस बारह घरों में चौका बरतन करनेवाली अपनी मां या बीबी को दो तमाचे जडकर पूरा कर सकता है। इसलिए उसे भविष्य को लेकर कोई उत्सुकता नहीं , वह ज्योतिष या ज्योतिषियों की शरण में क्यूं जाए ,कुछ समय पहले तक लोगों का जीवन इतना अनिश्चितता भरा नहीं हुआ करता था, संयुक्त परिवार होते थे, इस कारण यदि परिवार के एक दो व्यक्ति जीवन में आर्थिक क्षेत्र में सफल नहीं हुए, तो भी घर के छोटे मोटे कामों को संभालते हुए उनका जीवन यापन आराम से हो जाता था, क्यूंकि उन्हें संभालने वाले दूसरे भाई या परिवार के अन्य सदस्य होते थे।

पर आज व्यक्तिगत तौर पर अधिक से अधिक सफलता पाने की इच्छा ने, व्यक्तिगत परिवारों की बहुलता ने हर व्यक्ति के जीवन को अनिश्चितता भरा बना दिया है। एक लड़के की कमाई के बिना उसका शादी विवाह या सामाजिक महत्व नहीं बन पाता है। इसके अलावा वैज्ञानिक सुख सुविधाओं ने व्यक्ति को आराम तलब बना दिया है। जो अच्छी जगह पर हैं, वो अपने आनेवाली पीढी के मामलों में काफी महत्वाकांक्षी हो गए हैं। दो लोगों, दो परिवारों की जीवन शैली में बडा फासला बनता जा रहा है, ऐसे में भविष्य की ओर लोगों का ध्यान स्वाभाविक है। इसी कारण भविष्य को जाननेवाली विधा यानि ज्योतिष पर लोगों का विश्वास बढता जा रहा है।

सफलता के लिहाज से इस दुनिया के लोगों को कई भागों में विभक्त किया जा सकता है। कुछ वैसे हैं , जिन्हें अपने जीवन में माहौल भी अच्छा नहीं मिला, वे काम भी नहीं करते या करना चाहते। किसी प्रकार उनके दिन कट ही जाते हैं , इसलिए उन्हें भविष्य की कोई चिंता नहीं होती, वे अपने इर्द गिर्द के माहौल के अनुसार अपने और अपने परिवार के भविष्य को एक सीमा के अंदर ही देख पाने से निश्चिंत रहते हैं। दूसरे वैसे , जिन्हे अपने जीवन में माहौल भी मिला, काम भी कर पा रहे हैं और उसके अनुसार सफलता के पथ पर अग्रसर भी हैं , जीवन में भाग्य की किसी भूमिका को वे भी स्वीकार नहीं कर पाते, उन्हें अपना और अपने परिवार का भविष्य बहुत ही उज्जवल नजर आता है।

पर तीसरे वैसे लोग हैं, जो महत्वाकांक्षी बने होने और अपने साधन और मेहनत का भरपूर उपयोग करने के बावजूद भी कई कई वर्षों से असफल हैं ,चाहे समस्या कोई एक ही क्यूं न हो, उसके समाधान का कोई रास्ता उन्हें नजर नहीं आता । वैसी स्थिति में किसी अज्ञात शक्ति की ओर उनका रूझान स्वाभाविक है और ऐसे लोगों को ज्योतिष की आवश्यकता पडती है। प्रकृति के किसी नियम को बदल पाना तो किसी के लिए संभव नहीं , पर ज्योतिष के सही ज्ञान से लोगों को कुछ सलाह तो दी ही जा सकती है , जो उन्हे बेहतर जीवन जीने में मदद करें।
आइए हम ज्योतिष शास्त्र के बारे में कुछ जानकारी लेते हैं: 'ज्योतिषां सूयोदिग्रहाणं बोधक शास्त्रम्' अर्थात् सूर्य आदि ग्रहों और काल का बोध कराने वाले शास्त्र को 'ज्योतिष शास्त्र' कहा जाता है। इसमें मुख्यतः ग्रहों, नक्षत्रों की गति.. ज्योतिषी किसी बच्चे या व्यक्ति के जन्म का समय जानने कद बाद उस समय आकाश में ग्रह  - नक्षत्र जहां - जहां जिस स्थिति में होते हैं , उसका पता लगा लेते हैं। ग्रह  - नक्षत्रों की स्तिथि जानने के लिए ' पंचांग ' ( पत्री या पतरा  - जिसमे वर , तिथि , नक्षत्र , योग आदि के विवरण लिखे हों। ) या ' एफिरमेरिस ' की सहायता लेते हैं।  बाद कागज पर ग्रह - नक्षत्रों की स्तिथि के नक्षा बनाया जाता है।  उसे जन्म - कुंडली  कहते हैं। इस  जन्म -कुंडली के आधार पर ज्योतिषी उस बच्चे क्र भविष्य गणना करते हैं।  
         
इसके आलावा और एक तरह के ज्योतिषी हैं जो हाथ  को देख कर भविष्यवाणी करते हैं।  ये दोनों तरह के भाग्य - गणना  पद्धति ही लोकप्रिय है।  इसके अलावा  कई ज्योतिषी ललाट , कण , पैर की रेखा देख कर  भविष्यवाणी करते हैं।
जन्म- कुंडली -
प्रत्येक जन्म- कुंडली , जन्मपत्री के  ऊपर एक नक्षा या राशिचक्र बना रहता है। जन्म- कुंडली में बारह ( १२) खाने होते हैं।  आकाश मण्डल को काल्पनिक रेखाओं द्वारा बारह भागों में बांटा गया है। इस भाग के एक- एक खाने को राशि कहते हैं। ज्योतिषियों ने अपनी कल्पना से जीव व वास्तु में समता ढूंढ़ के बारह जशियों के नाम रखे हैं- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, और मीनराशि।  

ज्योतिषी अपनी कल्पना का घोड़ा और भी तेज दौड़ाते हुए विभिन्न राशि के जातक में काल्पनिक आकृति के दोष- गुण आरोपित करते हैं।  ज्योतिशियों के अनुसार इन बारह भागों में 27 प्रमुख नक्षत्र हैं - अश्विनी , भरणी , कृतिका , रोहिणी , मृगशिरा , आर्द्रा , पुरर्वसु , पुष्प , आश्लेष , मघा , पूर्वाफाल्गुनी , उत्तरफाल्गुनी , हस्त , चित्रा , स्वास्ति , विशाखा , अनुराधा , ज्योष्ठा , मूल , पूर्वाषाढ़ा , उत्तराषाढ़ा , श्रावणी , घनिष्ठा , शतभिषा , पूर्वाभाद्रपद , उत्तरभाद्रपद और रेवती। ज्योतिषियों के अनुसार जातक के भाग्य नियंत्रण के क्षेत्र में नक्षत्रों से ज्यादा ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है। जन्म समय में गृह- स्थिति के आधार पर जातक का भाग्य निर्धारित हो जाता है।  ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जो नौ (9) गृह हमारे भाग्य को निर्धारित व् नियंत्रित करते हैं उन ग्रहों के नाम हैं- सूर्य , चन्द्रमा , मंगल , बुध , गुरु , शुक्र , शनि , राहू व् केतू  हैं। 

जब किसी इंसान  का जन्मकुंडली बनाया जाता है , उस समय ज्योतिषी देखते हैं कि चन्द्रमा  राशि  में स्थित है। जिस राशि में चन्द्रमा की स्थिति होती है , वही उस इंसान की जन्म राशि  होती है। और जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र के सम्पर्क में होता है , उसे ही जातक का जन्म- नक्षत्र कहते हैं। 

इस जन्मकुंडली के अधर पर किसी भी इंसान के भुत- भविष्य व वर्तमान की घटनाओं के बारे में जाना जा सकता है।  अर्थात प्रत्येक इंसान की जन्मकुंडली उसके जीवन का आइना होती है। किसी इंसान  के जीवन में हर पल क्या- क्या होगा , साडी घटनाओं की छवि उसके जन्मकुंडली में दिखाई देती है।  यही जन्मकुंडली की विशेषताएं हैं। 

वराह मिहिर के कथनानुसार ज्योतिष शास्त्र 'मंत्र', 'होरा' और 'शाखा' इन तीन भागों में विभक्त था। होरा और शाखा का संबंध फलित ज्योतिष के साथ है। होरा और जन्म कुंडली से व्यक्ति के जीवन संबंधी फलाफल का विचार किया जाता है।

श्री स्वामी विवेकानंद के अनुसार अती-आर्थिक संकट समयी तथा ८०% प्रयत्न करके की यश ना पा सके तो ही भविष्य देखना चाहिए।

ज्योतिष शास्त्र में एक दिन और एक रात को मिलाकर एक अहोरात्र बनता है। स्वस्थ मनुष्य 24 घंटे में 21600 बार सांस लेता है।
ज्योतिष शास्त्र के मुख्य स्तम्भ  निम्न  प्रकार  से हैं -
·       ज्योतिष परिचय,
·       जन्म कुंडली व् उनके प्रकार,
·       राशियाँ,
·       मित्र राशि व् शत्रु राशि,
·       भाव अथवा ग्रह स्थान व् उनके प्रकार,
·       ग्रह व् उनके प्रकार,
·       ग्रह अवस्था,
·       ग्रह एवं उनका बल तथा उनके प्रभाव,
·       शुभ एवं अशुभ ग्रह,
·       ग्रहों की स्थिति एवं उनका प्रभाव,
·       केन्द्रेश त्रिकोनेश योगफल,
·       नक्षत्र एवं उनके प्रकार,
·       नक्षत्र व् उसमें जन्मे बालक का नक्षत्र फल,
·       ग्रह दशा एवं उनके प्रकार,
·       मांगलिक दोष अथवा कुज दोष व् उसके उपाय,
·       शनि की साढ़ेसाती व् उसके उपाय,
·       कालसर्प दोष व् उसके उपाय,
·       गंडांत समय अथवा खराब समय,
·       पंचांग एवं उसके घटक,
·       ग्रह रत्न एवं उसके फायदे,
·       ग्रह मंत्र एवं दान की वस्तुएं,
·       शुभ मुहूर्त देखना,
·       शुभ शगुन देखना,

ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्‌' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
कृपया ध्यान दें:- यह वेबसाइट पेपसिह राठौङ तोगावास द्वारा ज्योतिष की जानकारी तथा उनके मार्गदर्शन के ध्येय हेतु अर्पित एक पूर्णतया अव्यावसायिक वेबसाइट है,किसी प्रबंध संगठन से इस वेबसाइट का कोई प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। अगर कुछ त्रुटी रह जाये तो मार्गदर्शन व अपने सुझाव व परामर्श देने का प्रयास करें अपना परामर्श और जानकारी इस नंबर
+919723187551 पर दे सकते हैं। आप मेरे से फेसबुक पर भी जुङ सकते हैं।
सभी ज्योतिष प्रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास
रोचक और अजीब संग्रह आपके लिए.....
·        पंचांग
·        तिथि
·        वार
·        नक्षत्र
·        करण
·        योग
·        दिशाशूल
·        पंचक - Panchak
·        16 संस्कार
·        तिलक
·        पितृ दोष