तिथि
इसलिए प्रत्येक नये चन्द्र और पूर्ण चन्द्र के बीच में कुल चौदह तिथियां होती हैं. शून्य को नया चन्द तथा पन्द्रहवीं तिथि को पूर्णिमा कहते हैं. तिथियां शून्य यानि अमावस्या से शुरु होकर पूर्णिमा तक एक क्रम में चलती है और फिर पूर्णिमा से शुरु होकर अमावस्या तक उसी क्रम को दूबारा पूरा करती हैं तो एक चन्द्र मास पूरा होता है.
तिथियों के नाम-
सूर्य और चंद्रमा के अंतराल (दूरी) से तिथियां निर्मित होती हैं। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं। अत: उस दिन सूर्य और चंद्रमा का भोग्यांश समान होता है। चंद्रमा अपनी शीघ्र गति से जब 12 अंश आगे बढ़ जाता है तो एक तिथि पूर्ण होती है- ‘भक्या व्यर्कविधोर्लवा यम कुभिर्याता तिथि: स्यात्फलम्’। जब चंद्रमा सूर्य से 24 अंश की दूरी पर होता है तो दूसरी तिथि होती है। इसी तरह सूर्य से चंद्रमा 180 अंश की दूरी पर होता है तो पूर्णिमा तिथि होती है और जब 360 अंश की दूरी पर होता है तो अमावस्या तिथि होती है।
तिथि क्षय एवं वृद्धि- ग्रहों की आठ प्रकार की गति होती है। इत: ग्रहों की विभिन्न गतियों के कारण ही तिथि क्षय एवं वृद्धि होती है। एक तिथि का क्षय 63 दिन 54 घटी 33 कला पर होती है। जिसमें एक सूर्योदय हो वह शुद्ध, जिसमें सूर्योदय न हो वह क्षय और जिसमें दो सूर्योदय हो वह वृद्धि तिथि कहलाती है। क्षय और वृद्धि तिथियां शुभ कार्यों में वर्ज्य और शुद्ध तिथि शुभ होती है। तिथियों की गणना शुक्ल पक्ष से प्रारंभ होती है।
शुक्ल पक्ष की तिथि
शून्य अंश से 12 अंश तक प्रतिपदा
12 से 24 अंश तक द्वितीया
24 से 36 अंश तक तृतीया
36 से 48 अंश तक चतुर्थी
48 से 60 अंश तक पंचमी
60 से 72 अंश तक षष्ठी
72 से 84 अंश तक सप्तमी
84 से 96 अंश तक अष्टमी
96 से 108 अंश तक नवमी
108 से 120 अंश तक दशमी
120 से 132 अंश तक एकादशी
132 से 144 अंश तक द्वादशी
144 से 156 अंश तक त्रयोदशी
156 से 168 अंश तक चतुर्दशी
168 से 180 अंश तक पूर्णिमा
कृष्ण पक्ष की तिथि-(ह्रास मान अंशों के अनुसार)
180 से 168 अंश तक प्रतिपदा
168 से 156 अंश तक द्वितीया
156 से 144 अंश तक तृतीया
144 से 132 अंश तक चतुर्थी
132 से 120 अंश तक पंचमी
120 से 108 अंश तक षष्ठी
108 से 96 अंश तक सप्तमी
96 से 84 अंश तक अष्टमी
84 से 72 अंश तक नवमी
72 से 60 अंश तक दशमी
60 से 48 अंश तक एकादशी
48 से 36 अंश तक द्वादशी
36 से 24 अंश तक त्रयोदशी
24 से 12 अंश तक चतुर्दशी
12 से शून्य अंश तक अमावस्या
(कृष्ण पक्ष की गणना 180 अंश चंद्रमा से 360 अंश के संक्रमण के दौरान ह्रास मान अंशों की गति के अनुसार किया जाता है)
तिथि विवरण
प्रतिपदा तिथि- यह वृद्धि और सिद्धप्रद तिथि है। स्वामी अग्नि देवता, नन्दा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ, कृष्ण पक्ष में शुभ। इस तिथि में कूष्माण्ड दान एवं भक्षण त्याज्य है।
द्वितीया- यह सुमंगला और कार्य सिद्धिकारी तिथि है। इसके स्वामी ब्रह्मा हैं। भद्रा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ, कृष्ण पक्ष में शुभ । इस तिथि में कटेरी फल का दान और भक्षण त्याज्य है।
तृतीया तिथि- यह सबला और आरोग्यकारी तिथि है। इसकी स्वामी गौरी जी हैं। जया नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ, कृष्ण पक्ष में शुभ । इस तिथि में नमक का दान व भक्षण त्याज्य है।
चतुर्थी तिथि- यह खल और हानिप्रद तिथि है। इसके स्वामी गणेश जी हैं। रिक्ता नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ, कृष्ण पक्ष में शुभ । इस तिथि में तिल का दान और भक्षण त्याज्य है।
पंचमी तिथि- यह धनप्रद व शुभ तिथि है। इसके स्वामी नागराज वासुकी हैं। पूर्णा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में अशुभ और कृष्ण पक्ष में शुभ । इस तिथि में खट्टी वस्तुओं का दान और भक्षण त्याज्य है।
षष्ठी तिथि- कीर्तिप्रद तिथि है। इसके स्वामी स्कंद भगवान हैं। नन्दा नाम से ख्याति, शुक्ल व कृष्ण पक्ष में मध्यम फलदायी, तैल कर्म त्याज्य।
सप्तमी तिथि- मित्रप्रद व शुभ तिथि है। इसके स्वामी भगवान सूर्य हैं। भद्रा नाम से ख्याति, शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम, आंवला त्याज्य।
अष्टमी तिथि- बलवती व व्याधि नाशक तिथि है। इसके देवता शिव जी हैं। जया नाम से ख्याति, शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम, नारियल त्याज्य।
नवमी तिथि- उग्र व कष्टकारी तिथि है। इसकी देवता दुर्गा जी हैं। रिक्ता नाम से ख्याति, शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम, काशीफल (कोहड़ा, कद्दू) त्याज्य।
दशमी तिथि- धर्मिणी और धनदायक तिथि है। इसके देवता यम हैं। पूर्णा नाम से ख्याति, शुक्ल व कृष्ण दोनों पक्षों में मध्यम, त्याज्य कर्म परवल है।
एकादशी तिथि- आनंद प्रदायिनी और शुभ फलदायी तिथि है। इसके देवता विश्व देव हैं। नन्दा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ, त्याज्य कर्म दाल है।
द्वादशी तिथि- यह यशोबली और सर्वसिद्धिकारी तिथि है। इसके देवता हरि हैं। भद्रा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ, त्याज्य कर्म मसूर है।
त्रयोदशी तिथि- यह जयकारी और सर्वसिद्धिकारी तिथि है। इसके देवता मदन (कामदेव) हैं। जया नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ, त्याज्य कर्म बैंगन है।
चतुर्दशी तिथि- क्रूरा और उग्रा तिथि है। इसके देवता शिवजी हैं। रिक्ता नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में शुभ, कृष्ण पक्ष में अशुभ, त्याज्य कर्म मधु है।
पूर्णिमा तिथि- यह सौम्य और पुष्टिदा तिथि है। इसके देवता चंद्रमा हैं। पूर्णा नाम से ख्याति, शुक्ल पक्ष में पूर्ण शुभ, त्याज्य कर्म घृत है।
अमावस्या तिथि- पीड़ाकारक और अशुभ तिथि है। इसके स्वामी पितृगण हैं। फल अशुभ है, त्याज्य कर्म मैथुन है।
शुभ ग्राह्य तिथियां
बच्चे नाम रखना- प्रतिपदा (कृष्ण पक्ष) तथा इसके अतिरिक्त दोनों पक्षों की 2, 3, 7, 10, 11, 12 व 13वीं तिथि तथा पूर्णिमा शुभ ग्राह्य है।
विद्यारंभ- शुक्ल पक्ष में 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13वीं तिथि तथा पूर्णिमा शुभ ग्राह्य है।
मुण्डन संस्कार- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 13 एवं पूर्णिमा शुभ ग्राह्य है।
दुकान एवं बहीखाता प्रारंभ करना- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 12, 13वीं तिथि तथा पूर्णिमा शुभ ग्राह्य है।
नौकरी आरंभ करना- दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12 एवं पूर्णिमा शुभ ग्राह्य है।
वाहन खरीदने के लिए- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 एवं पूर्णिमा शुभ ग्राह्य।
गृहारंभ एवं शिलान्यास- नींव खोदने एवं मकान बनवाने के लिए कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 एवं पूर्णिमा शुभ ग्राह्य।
नूतन घर में प्रवेश- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तथा पूर्णिमा शुभ ग्राह्य।
भूमि खरीदने के लिए- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 5, 6, 10, 11, 13 तथा पूर्णिमा शुभ ग्राह्य।
विवाह मुहूर्त- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा दोनों पक्ष की 2, 3, 5, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13 एवं पूर्णिमा शुभ ग्राह्य।
(अधिकांश कार्यों में 4, 9, 14 तिथियों को जिन्हें रिक्ता नाम से ख्याति है, त्याज्य माना गया है। )
विशेष-
यदि रविवार को द्वादशी तिथि हो तो क्रकच और दग्धा नाम कुयोग तथा प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी होने पर मृत्युदा (पीड़ाकारक) योग होता है। इस दिन शेष सभी तिथियां शुभ हैं।
सोमवार को एकादशी होने पर क्रकच और दग्धा कुयोग और द्वितीया, सप्तमी तथा द्वादशी होने पर मृत्युदा योग होता है। शेष सभी तिथियां शुभ हैं।
मंगलवार को दशमी होने क्रकच और पंचमी होने पर दग्ध नामक कुयोग तथा प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी होने पर मृत्युदा नामक योग होता है। तृतीया, अष्टमी तथा त्रयोदशी होने पर सिद्धिप्रद योग होता है।
बुधवार को नवमी होने पर क्रकच, तृतीया होने पर दग्ध नामक कुयोग और तृतीया, अष्टमी, त्रयोदशी होने पर मृत्युदा नामक योग होता है। द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी होने पर सिद्धिप्रद योग होता है।
गुरुवार को अष्टमी, षष्ठी होने पर क्रमश: क्रकच और दग्ध कुयोग तथा चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी होने पर मृत्युदा योग, पंचमी, दशमी, पूर्णिमा होने पर सिद्धिप्रद योग होता है।
शुक्रवार को सप्तमी होने पर क्रकच, अष्टमी होने पर दग्ध नाम कुयोग, द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी होने पर मृत्युदा योग और प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी होने पर सिद्धिप्रद योग होता है।
शनिवार को षष्ठी होने पर क्रकच और नवमी होने पर दग्ध नामक कुयोग तथा पंचमी, दशमी पूर्णिमा होने पर मृत्युदा योग और चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी होने पर सिद्धिप्रद योग होता है।
(उपरोक्त दोष मध्याह्न के पश्चात न्यून हो जाते हैं और यदि सर्वार्थसिद्धि योग, अमृत योग, रवियोग इत्यादि दोषसंघ निवारक योग होता है तो तिथि जन्म दोष समाप्त हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त चंद्रबल यदि उत्तम है तो भी तिथि के कारण उत्पन्न कुयोगों का निवारण हो जाता है- क्रकचो मृत्यु योगाख्यो दिने दग्ध तथैव च। चंद्रे शुभे क्षयं यान्ति वृक्षा वज्राहता इव।।)
एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)।
हिन्दू काल गणना के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमावस्या के अन्त तक रहता है. अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है. इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है. तिथि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है.
- प्रतिपदा- अग्नयादि देवों का उत्थान पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को होता है। अग्नि से संबंधित कुछ और विशेष पर्व प्रतिपदा को ही होते हैं।
- द्वितीया- प्रजापति का व्रत प्रजापति द्वितीया इसी तिथि को होता है।
- तृतीया- चूँकि गौरी इसकी स्वामिनी है, अतः उनका सबसे महत्वपूर्ण व्रत हरितालिका तीज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को ही महिलाएँ करती हैं।
- चतुर्थी- गणेश या विनायक चतुर्थी सर्वत्र विख्यात है। यह इसलिए चतुर्थी को ही होती है, क्योंकि चतुर्थी के देवता गणेश हैं।
- पंचमी- पंचमी के देवता नाग हैं, अतः श्रावण में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की दोनों चतुर्थी को नागों तथा मनसा (नागों की माता) की पूजा होती है।
- षष्ठी- स्वामी कार्तिक की पूजा षष्ठी को होती है।
- सप्तमी- देश-विदेश में मनाया जाने वाला सर्वप्रिय त्योहार प्रतिहार षष्ठी व्रत (डालाछठ) यद्यपि षष्ठी और स्वामी दोनों दिन मनाया जाता है, किंतु इसकी प्रधान पूजा (और उदयकालीन सूर्यार्घदान) सप्तमी में ही किया जाता है। छठ पर्व के निर्णय में सप्तमी प्रधान होती है और षष्ठी गौण। यहाँ ज्ञातव्य है कि सप्तमी के देवता सूर्य हैं।
तिथि = चन्द्र का भोगांश - सूर्य का भोगांश
- शुक्ल पक्ष में १-१४ और पूर्णिमा-शुक्ल पक्ष हिन्दू काल गणना अनुसार पूर्णिमांत माह के द्वितीयार्ध पक्ष (१५ दिन) को कहते हैं। यह पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक होता है।
- चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है।
- वैशाख की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है।
- ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है।
- आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू-पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन कबीर जयंती मनाई जाती है।
- श्रावण की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाता है।
- भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है।
- अश्विन की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।
- कार्तिक की पूर्णिमा के दिन पुष्कर मेला और गुरुनानक जयंती पर्व मनाए जाते हैं।
- मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
- पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ करते हैं। बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
- माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।
- फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है।
- कृष्ण पक्ष में १-१४ और अमावस्या-कृष्ण पक्ष हिन्दू काल गणना अनुसार पूर्णिमांत माह के उत्तरार्ध पक्ष (१५ दिन) को कहते हैं। यह पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक होता है।
2) वार (Day)
3) नक्षत्र (Nakshatra)
4) योग (Yog)
5) करण (Karan)
1) प्रतिपदा (Pratipada) (परिवा/ पडिवा/ परमा)
2) द्वितीया (दूज/ दोज)
3) तृतीया (तीज)
4) चतुर्थी (चौथ)
5) पंचमी (पाँचे)
6) षष्टी (षष्ट/ छटें/ छट)
7) सप्तमी (सातें)
8) अष्टमी (आठें)
9) नवमी (नमें)
10) दशमी (दसें)
11) एकादशी (ग्यारस)
12) द्वादशी (बारस)
13) त्रयोदशी (तेरस)
14) चतुर्दशी ( चौदस)
15) पूर्णिमा (पूनों)
30) अमावस्या (अमावस)
तिथियाँ शुक्लपक्ष (Shukla Pakshya) की प्रतिपदा (Pratipada) से गिनी जाती है. पूर्णिमा (Purnima) को 15 तथा अमावस्या (Amabasya) को 30 तिथि कहते हैं. जिस दिन सूर्य व चन्द्रमा में 180º का अन्तर (दूरी) होता है अर्थात सूर्य व चन्द्र आमने सामने होते हैं तो वह पूर्णिमा तिथि कहलाती है. और जब सुर्य व चन्द्रमा एक ही स्थान पर होते हैं अर्थात 0º का अन्तर होता है तो अमावस्या तिथि कहलाती है. भचक्र का कुलमान (Kulman) 360º है, तो एक तिथि=360»30=12º अर्थात सूर्य-चन्द्र में 12º का अन्तर पडने पर एक तिथि होती है.
कृष्ण पक्ष में अमावस्या होती है और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा होती है | जब भी ग्रहण होते है तो अमावस्या को सूर्य ग्रहण होता है | पूर्णिमा को चन्द्र ग्रहण होता है |
तिथियों की पूर्ण जानकारी
तिथियाँ १५ होती है और पक्ष में भी १५ होती है |
नोट -- जिस देवता की जो विधि कही गई है उस तिथि में उस देवता की पूजा , प्रतिष्ठा , शांति विशेष हितकर होती है |
प्रथम खंड
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द्वितीय खंड
|
तृतीय खंड
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नाम
|
प्रतिपत
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षष्ठी
|
एकादशी
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नंदा
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द्वितीया
|
सप्तमी
|
द्वादशी
|
भद्रा
|
तृतीया
|
अष्टमी
|
त्रयोदशी
|
जया
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चतुर्थी
|
नवमी
|
चतुर्दशी
|
रिक्ता
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पंचमी
|
दशमी
|
पूर्णिमा
|
पूर्ण
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