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ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों,नक्षत्रों आदि की गति,परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।ज्योतिषशास्त्र लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर रहा हूँ।

ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी - कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या - क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क - वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र।

ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति "विद" धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।

ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।

पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर''ज्योतिषामयनंयक्षुरू''ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर '' प्रभु-कृपा ''भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। 'दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।

दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचेभयात/भभोतजैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास

Friday 27 June 2014

यात्रा मुहुर्त-



यात्रा मुहुर्त-


मनुष्य विभिन्न उद्देश्यों और कार्यों से जीवन में समय समय पर यात्रा करते। जब हम किसी विशेष उद्देश्य या कार्य से यात्रा करते हैं तो हमारी अपेक्षा रहती है कि जिस प्रयोजन मे हम यात्रा कर रहे हें उसमें हमें सफलता प्राप्त हो।
यात्रा कैसी होगी व यात्रा से अनुकूल परिणाम प्राप्त होगा या नहीं यह उस मुहुर्त पर निर्भर करता जिसमें हम यात्रा करते हैं।  ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि यात्रा के विषय में जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब देखा जाता है कि
यात्रा का उद्देश्य क्या है,
कितनी दूरी तक यात्रा करनी है,
यात्रा का मार्ग क्या है अर्थात जलमार्ग, वायु मार्ग, सड़क मार्ग या रेल मार्ग में से किस मार्ग से आप यात्रा कर रहे हैं। यात्रा हेतु तिथि विचार
यात्रा के लिये प्रतिपदा श्रेष्ठ तिथि मानी जाती है,द्वितीया कार्यसिद्धि के लिये,त्रुतीया आरोग्यदायक,चतुर्थी कलह प्रिय,पंचमी कल्याणप्रदा षष्ठी कलहकारिणी सप्तमी भक्षयपान सहित,अष्टमी व्याधि दायक नवमी मौत दायक,दसमी भूमि लाभ प्रद,एकादसी स्वर्ण लाभ करवाने वाली,द्वादसी प्राण नाशक,और त्रयोदसी सर्व सिद्धि दायक होती है,त्रयोदसी चाहे शुक्ल पक्ष की हो या कृष्ण पक्ष की सभी सिद्धियों को देती है,पूर्णिमा एवं अमावस्या को यात्रा नही करनी चाहिये,तिथि क्षय मासान्त तथा ग्रहण के बाद के तीन दिन यात्रा नुकसान दायक मानी गयी है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि दैनिक या रोजमर्रा की यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त का विचार नहीं किया जाता है।
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त देखने के  निम्न सामान्य नियम है
यात्रा निषेध प्रथम 
1.यात्रा के मुहुर्त के संदर्भ में बताया गया है कि कुम्भ लग्न और कुम्भ लग्न का नवमांश यात्रा के लिए त्याज्य है, अर्थात इस स्थिति यात्रा नहीं करनी चाहिए 
2.जन्म लग्न से आठवां लग्न या जन्म राशि से आठवीं राशि का लग्न त्यागने योग्य होता है  
3.ज्योतिषाचार्यों के अनुसार यात्रा के समय प्रथम, षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में चन्द्रमा हो तो यात्रा स्थगित कर देनी चाहिए।
4.लग्नेश अगर षष्टम, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में है तो यात्रा नहीं करनी चाहिए।
5.सप्तम भाव में शुक्र एवं दशम भाव में शनि हो तो यह स्थिति भी यात्रा के लिए शुभ नहीं मानी जाती है फलत: यात्रा से बचना चाहिए  
यात्रा के सम्बन्ध में अगर आप इन पांच निषेधों का पालन करें तो यात्रा में आने वाली समस्याओं से आप बच सकते हैं।

यात्रा निषेध द्वितीय 
1.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा के मुहुर्त के संदर्भ में बताया गया है कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
2.जिस महीने में एक भी संक्रान्ति नहीं हो उसे क्षय मास कहते हैं और जिसमें दो संक्रांति हो उसे अधिक मास कहते हैं। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार यात्रा की दृष्टि से ये दोनों ही मास अशुभ होते हैं अत: इस मास में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
3.आषाढ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक यात्रा स्थगित रखनी चाहिए  
4.यात्रा मुहुर्त के संदर्भ में आषाढ़, श्रावण और भाद्रपद मासों का त्याग करना चाहिए यानी इन मासों मे यात्रा से बचना चाहिए।
5.सूर्य जब मिथुन,कन्या, धनु, मीन राशि में हो तब आपको लम्बी दूरी की यात्रा से यात्रा बचना चाहिए।
6.सूर्य जब वृष, सिंह या वृश्चिक राशि में हो तब आपको जलमार्ग से यात्रा नहीं करनी चाहिए।
यात्रा के संदर्भ में बताये गये निषेधों और पूर्व भागों में बताये गये नियमों का पालन करें तो संभव है कि आपकी यात्रा पूर्णत: सफल रहेगी और यात्रा से आपको अनुकल लाभ मिलेगा।
1.नक्षत्र आंकलन (Assessment of Nakshatra)
यात्रा पर जाने से पहले नक्षत्रों की स्थिति का विचार करना चाहिए। अगर यात्रा के दिन हस्त(Hast), अश्विनी(Ashwani), पुष्य(Pushya), मृगशिरा(Mrigshira), रेवती(Raivti), अनुराधा(Anuradha), पुनर्वसु(Punarvashu), श्रवण (Sravan), घनिष्ठा (Ghanistha) नक्षत्र हो तो यात्रा अनुकूल और शुभ रहता है आप इस नक्षत्र में यात्रा कर सकते है। इन नक्षत्रों के अलावा आप उत्तराफाल्गुनी(Uttrafalguni), उत्तराषाढ़ा(Uttrasadha), उत्तराभाद्रपद (Uttravadrapad) में भी यात्रा कर सकते हैं हलांकि ये नक्षत्र इस प्रसंग में मध्यम स्तर के माने जाते हैं।

2.नक्षत्र शूल (Nakshatra Shool):
यात्रा करते समय दिशा का विचार भी करना भी जरूरी होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी नक्षत्रों की अपनी दिशा होती है, जिस दिन जिस दिशा का नक्षत्र हो उस दिन उस दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए. आइये इसके लिए एक उदाहरण देखें:
अ.ज्येष्ठा नक्षत्र की दिशा पूर्व होती है अत: जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन पूर्व दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
ब्.पूर्वाभाद्रपद की दिशा दक्षिण होती है, अत: पूर्वाभाद्रपद वाले नक्षत्र के दिन दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। दक्षिण के अलावा आप इस नक्षत्र में किसी भी दिशा में यात्रा कर सकते हैं।
स्.रोहिणी नक्षत्र की दिशा पश्चिम होती है। इस दिशा में रोहिणी नक्षत्र में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
द्.उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की दिशा उत्तर है। जिस दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र हो उस दिन उत्तर दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए। इस नक्षत्र में उत्तर दिशा के अलावा किसी अन्य नक्षत्र में यात्रा कर सकते हैं।
जिस दिशा में आपको यात्रा करनी हो उस दिशा का नक्षत्र होने पर नक्षत्र शूल लगता है अत: नक्षत्र की दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।

3.तिथि विचार (Tithi Vichar)
जब आप यात्रा के लिए मुहुर्त का विचार करें तो ध्यान रखें कि तिथि कौन सी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, सप्तमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि बहुत ही शुभ मानी गयी है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि भी यात्रा के संदर्भ में उत्तम मानी जाती है । उपरोक्त तिथियों के अलावा जो भी तिथियां हैं वे यात्रा के लिए शुभ नहीं मानी जाती हैं।

4.करण (Karana)
विष्टि करण होने से भद्रा दोष लगता है, इस स्थिति में यात्रा नहीं करनी चाहिए.

5.वार विचार (Var Vichar)
यात्रा के लिए बृहस्पति और शुक्रवार को सबसे अच्छा माना जाता है। रविवार, सोमवार और बुधवार को यात्रा की दृष्टि से मध्यम माना जाता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार मंगलवार और शनिवार यात्रा के लिए शुभ नहीं होते हैं अत: संभव हो तो इस तिथि में यात्रा नहीं करें.

6.वारशूल (Varshula)
ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि यात्रा पर निकलने से पहले मुहुर्त का विचार करते हुए वार शूल का भी ध्यान रखना चाहिए। वारशूल से बचने के लिए सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में नहीं जाना चाहिए। सोमवार और बृहस्पतिवार को आग्नेय दिशा में यात्रा नहीं करना चाहिए। दक्षिण दिशा में बृहस्पतिवार को यात्रा नहीं करनी चाहिए। रविवार और शुक्रवार को नैऋत्य एवं पश्चिम दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए। मंगलवार के दिन वायव्य दिशा में यात्रा करना वारशूल का कारण बनता है अत: इस दिशा में यात्रा से बचना चाहिए। मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में यात्रा करना अशुभ होता है क्योंकि इस दिन इस दिशा में वार शूल लगता है। बुधवार और शनिवार को इशान यानी उत्तर पूर्व दिशा में यह शूल लगता है अत: इस दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।

7.योग (Yoga):
यात्रा के संदर्भ में योगों का आंकलन भी आवश्यक होता है। अगर यात्रा के दिन निम्न अशुभ योग हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए। जैसे व्यातिपात (Vyatipat),
वैधृति (Vaidhiriti),
मृत्यु (Mritu),
दग्ध (Dagdha),
काक्रच (Kakrach),
सम्वर्तक (Samvartak),
हुताशन (Hutasan),
विष (Vish) और
यमघण्ट(Yamghant)

8.चन्द्रनिवास (Chandra Nivas)
चन्द्रनिवास में देखा जाता है कि चन्द्रमा किस दिशा में हैं (In which directon Moon is situated in Chandra Nivas) । जिस दिशा में चन्द्रमा होता है उस दिशा में यानी सम्मुख दिशा में और दाहिने दिशा में यात्रा करना शुभ होता है एवं पीछे और बायीं ओर यात्रा करना ठीक नहीं माना जाता है। इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं माना कि आज चन्द्रमा पूर्व दिशा में है और आपको पूर्व में जाना है तो यात्रा के लिए यह शुभ स्थिति है, अगर आप दक्षिण में जाना चाहें तो इसके लिए भी चन्द्र शुभ है क्योकि पूर्व दिशा से दायीं ओर दक्षिण दिशा है।
चन्द्र निवास को आप आसानी से समझ सकें इसके लिए चन्द्र निवास चक्र दिया गया है, आप इसे देख सकते हैं।

चन्द्र निवास के अन्तर्गत चन्द्रमा अगर मेष, सिंह अथवा धनु राशि में है तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा आज पूर्व दिशा में हैं। अगर चन्द्रमा वृष, कन्या अथवा मकर राशि में हैं तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा दक्षिण दिशा में विराजमान है। मिथुन, तुला या कुम्भ में से किस भी राशि में चन्द्र है तो इसका अर्थ यह हुआ कि चन्द्रमा पश्चिम दिशा में है। कर्क, वृश्चिक और मीन राशि में से किसी में चन्द्र है तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा उत्तर दिशा में विराजमान है।

9.सम्मुख शुक्र (Sammukh Shukra)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यात्रा के लिए सम्मुख शुक्र का त्याग किया जाना चाहिए  अर्थात जिस दिशा में आपको यात्रा करनी है उस दिशा में अगर शुक्र स्थित है तो सम्मुख शुक्र लगता है  । सम्मुख शुक्र यात्रा के लिए अशुभ होता है। सम्मुख शुक्र कैसे होता है अब इसे देखिए जब शुक्र गोचरवश कृतिका से आश्लेषा नक्षत्र में हो तो पूर्व दिशा में, मघा से विशाखा नक्षत्र तक दक्षिण में, अनुराधा से श्रवण तक पश्चिम में तथा घनिष्ठा से भरणी नक्षत्र में होने पर उत्तर दिशा में होता है। उपरोक्त बातों से निष्कर्ष निकलता है कि गोचरवश शुक्र जिस नक्षत्र में पहुंचता है उस नक्षत्र की दिशा में यात्रा करने से सम्मुख शुक्र लगता है।

10.परिघ दण्ड (Parigh Dand)
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि यात्रा सफल और अनुकूल फलदायी हो इसके लिए मुहुर्त का विचार करते हुए परिघ दण्ड का भी आंकलन करना चाहिए। परिघ दण्ड का आंकलन किस प्रकार किया जाता है और यह किस प्रकार से यात्रा में शुभाशुभ प्रभाव डालता है आइये इसे समझें, गोचरवश चन्द्रमा घनिष्ठा से आश्लेषा नक्षत्र में भ्रमण करता है तो पूर्व और उत्तर दिशा में यात्रा करना शुभ होता है जबकि दक्षिण व पश्चिम दिशा में अशुभ फल देता है। जब चन्द्रमा मघा से श्रवण नक्षत्र तक गोचरवश जब भ्रमण करता है तब पश्चिम और दक्षिण दिशा में शुभ तथा पूर्व और उत्तर दिशा में अशुभ फल देता है, इसे परिघ दण्ड कहते हैं।
यात्रा का मुहुर्त के तीसरे भाग में अब आपका स्वागत है। इस भाग में हम जानेंगे कि योगिनी निवास, तारा, चन्द्र शुद्धि, घात व लग्न यात्रा के संदर्भ में क्या प्रभाव डालते हैं और इनका आंकलन किस प्रकार किया जाता है।
11.योगिनी निवास (Yogni Niwas)
ज्योतिषशास्त्र मे बताया गया है कि यात्रा में सम्मुख और बांयी तरफ की योगिनी से बचना चाहिए.  दाहिने और पीछे की योगिनी शुभ मानी जाती है.  योगिनी का निवास अलग अलग तिथियों मे अलग अलग दिशा में होता है, आइये देखें कि योगिनी किस तिथि को किस दिशा में रहती है।
1.पूर्व दिशा में योगिनी का निवास प्रतिपदा और नवमी तिथि को रहता है।
2. तृतीया और एकादशी तिथि को योगिनी आग्नेश दिशा में निवास करती है।
3.पंचमी और त्रयोदशी तिथि को योगिनी दक्षिण दिशा में निवास करती है। 4.चतुर्थी और द्वादशी तिथि को योगिनी नैऋत्य दिशा में निवास करती है।
5.षष्टी और चतुर्दशी तिथि को योगिनी पश्चिम में रहती है.
6.सप्तमी और पूर्णिमा को योगिनी वायव्य दिशा में वास करती है।
7.द्वितीया और दशमी तिथि के दिन योगिनी उत्तर दिशा में विचरण करती है।
8.अष्टमी और अमावस के दिन योगिनी का निवास ईशान यानी उत्तर पूर्व में रहता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा में सम्मुख और बॉयी तरफ की योगिनी से बचना चाहिए। दाहिने और पीछे की ओर योगिनी शुभ मान जाती है।
12.तारा शुद्धि (Tara Sudhhi)
आप यात्रा पर जा रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है उससे पहला, तीसरा, पांचवां, सातवां, दशवां, बारहवां, चौदहवां, सोलवां, उन्नीसवां, इक्कीसवां, तेइसवां और पच्चीसवां नक्षत्र हो तो उस दिन यात्रा नहीं करें । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इन नक्षत्रों में यात्रा करना नुकसानदेय हो सकता है। अगर आप इन नक्षत्रों का यात्रा में त्याग करें तो उत्तम रहता है इससे आपको तारा दोष से नहीं लगता है, इसे तारा शुद्धि के नाम से भी जाना जाता है (You should avoid Tara Dosha for Travel)
13.चन्द्र शुद्धि (Chandra Sudhhi)
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा पर निकलने से पहले चन्द्रमा की शुद्धि का भी विचार करना चाहिए (You should consider for chandra sudhhi when your are going for Yatra)। आपके जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में था उस राशि से तीसरा, छठा, दसमा, ग्यारहवां, पहला और सातवें राशि में अगर चन्द्र है तो यह शुभ होता है। यात्रा के दिन अगर चन्द्रमा गोचरवश चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश राशि में हो तो यात्रा स्थगित कर देना चाहिए, इससे चन्द्र दोष नहीं लगता है (In transit of Moon situated in Fourth, Eight or Twelveth House so you are free from Chandra Dosha)
14.घात (Ghat)
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राशि के अनुसार जो घात मास आता है उसका यात्रा के समय विशेष रूप से त्याग करना चाहिए(As per your Sign Avoid travel in month of Ghat)। मान लीजिए व्यक्ति की राशि सिंह है तो उसके लिए फाल्गुन मास, शनिवार मकर राशि का चन्द्रमा, मूल नक्षत्र तथा घनिष्ठा नक्षत्र का प्रथम चरण व तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि यात्रा के लिए शुभ नहीं माना जाता। इस राशि के जातक को मकर लग्न में भी यात्रा से बचना चाहिए अन्यथा घात लगता है। इसी प्रकार से अन्य राशियों के जातक को भी घात का आंकलन करके यात्रा करना चाहिए।
15.लग्न (Lagna)
यात्रा के लिए आप जिस दिशा में जाना चाहते हैं, उस दिशा से सम्बन्धित लग्न या राशि के होने पर लाभदायक स्थिति रहती है इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं, यदि कोई व्यक्ति पूर्व दिशा की यात्रा करना चाहता है तो मेष, सिंह, धनु राशी का लग्न एवं राशि शुभफलदायक रहती है। इसी प्रकार दक्षिण दिशा में यात्रा करने के लिए वृष, कन्या व मकर एवं पश्चिम दिशा में यात्रा करने के लिए मिथुन, तुला एवं उत्तर दिशा में यात्रा करने के लिए कर्क, वृश्चिक एवं मीन लग्न व राशि उत्तम होता है।

जिस व्यक्ति का जो लग्न एवं राशि होती है यदि यात्रा के लिए वही लग्न व राशि का प्रयोग किया जाए तो वह भी अनुकूल फल देता है (You can travel in same lagna and sign for favourable result), यहां इस तथ्य को समझने के लिए हम एक उदाहरण देख सकते हैं, मान लीजिए किसी व्यक्ति का लग्न मेष एवं राशि धनु है, यदि वह व्यक्ति मेष लग्न और धनु राशि या धनु लग्न और धनु राशि या धनु लग्न और मेष राशि में यात्रा करता है तो यात्रा में सफलता मिलने की संभावना अधिक रहती है।

यात्रा के संदर्भ में वर्गोत्तर लग्न और वर्गोत्तम चन्द्र अनुकूल रहता है (Vargottar Lagna or Vargottam Chandra is good for Travel), ऐसे में यदि केन्द्र (1,4,7,10 एवं त्रिकोण (5,9) में शुभ ग्रह तथा 3,6,11भाव में पाप ग्रह हों तो अत्यंत शुभ होता है।
जब किसी की शवयात्रा दिखे तो क्या करना चाहिए?
जीवन का अंतिम अटल सत्य है मृत्यु। भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है कि जीवन के इस अटल सत्य को कोई टाल नहीं सकता है। जिस व्यक्ति का जन्म हुआ है वह अवश्य ही एक दिन मृत्यु को प्राप्त होगा। अमर केवल आत्मा होती है जो शरीर बदलती है। जिस प्रकार हम कपड़े बदलते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा अलग-अलग शरीर धारण करती है और निश्चित समय के लिए। इसके बाद पूर्व निर्धारित समय पर आत्मा शरीर छोड़ देती है। किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद हिंदू धर्म के अनुसार मृत शरीर का दहन किया जाता है। किसी भी इंसान की मृत्यु के बाद शवयात्रा निकाली जाती है और इस संबंध में भी शास्त्रों में कई नियम बताए गए हैं। जिन्हें अपनाने से धर्म लाभ तो प्राप्त होता है साथ ही इससे मृत आत्मा को शांति भी मिलती है। यदि हम कहीं जा रहे हैं और रास्ते में शवयात्रा दिखाई दे तो उस समय थोड़ी देर ठहर जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि शवयात्रा निकलती दिखाई देती है तो कुछ देर ठहरकर परमात्मा से आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। मृतक को प्रणाम करके आगे बढऩा चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में शवयात्रा के संबंध में बताया गया है कि यदि आप किसी जरूरी कार्य के लिए जा रहे हैं और रास्ते में कोई शवयात्रा दिख जाए तो इसका मतलब है कि आपको इच्छित कार्य में सफलता मिलेगी। आपके सोचे हुए कार्य पूर्ण हो जाएंगे और परेशानियां दूर हो जाएंगी

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