यात्रा मुहुर्त-
ज्योतिषशास्त्री कहते हैं कि यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त देखने के निम्न सामान्य नियम है
यात्रा पर जाने से पहले नक्षत्रों की स्थिति का विचार करना चाहिए। अगर यात्रा के दिन हस्त(Hast), अश्विनी(Ashwani), पुष्य(Pushya), मृगशिरा(Mrigshira), रेवती(Raivti), अनुराधा(Anuradha), पुनर्वसु(Punarvashu), श्रवण (Sravan), घनिष्ठा (Ghanistha) नक्षत्र हो तो यात्रा अनुकूल और शुभ रहता है आप इस नक्षत्र में यात्रा कर सकते है। इन नक्षत्रों के अलावा आप उत्तराफाल्गुनी(Uttrafalguni), उत्तराषाढ़ा(Uttrasadha), उत्तराभाद्रपद (Uttravadrapad) में भी यात्रा कर सकते हैं हलांकि ये नक्षत्र इस प्रसंग में मध्यम स्तर के माने जाते हैं।
2.नक्षत्र शूल (Nakshatra Shool):
यात्रा करते समय दिशा का विचार भी करना भी जरूरी होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सभी नक्षत्रों की अपनी दिशा होती है, जिस दिन जिस दिशा का नक्षत्र हो उस दिन उस दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए. आइये इसके लिए एक उदाहरण देखें:
3.तिथि विचार (Tithi Vichar)
जब आप यात्रा के लिए मुहुर्त का विचार करें तो ध्यान रखें कि तिथि कौन सी है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा के लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, दशमी, सप्तमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि बहुत ही शुभ मानी गयी है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि भी यात्रा के संदर्भ में उत्तम मानी जाती है । उपरोक्त तिथियों के अलावा जो भी तिथियां हैं वे यात्रा के लिए शुभ नहीं मानी जाती हैं।
4.करण (Karana)
विष्टि करण होने से भद्रा दोष लगता है, इस स्थिति में यात्रा नहीं करनी चाहिए.
5.वार विचार (Var Vichar)
यात्रा के लिए बृहस्पति और शुक्रवार को सबसे अच्छा माना जाता है। रविवार, सोमवार और बुधवार को यात्रा की दृष्टि से मध्यम माना जाता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार मंगलवार और शनिवार यात्रा के लिए शुभ नहीं होते हैं अत: संभव हो तो इस तिथि में यात्रा नहीं करें.
ज्योतिषशास्त्रियों का मानना है कि यात्रा पर निकलने से पहले मुहुर्त का विचार करते हुए वार शूल का भी ध्यान रखना चाहिए। वारशूल से बचने के लिए सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में नहीं जाना चाहिए। सोमवार और बृहस्पतिवार को आग्नेय दिशा में यात्रा नहीं करना चाहिए। दक्षिण दिशा में बृहस्पतिवार को यात्रा नहीं करनी चाहिए। रविवार और शुक्रवार को नैऋत्य एवं पश्चिम दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए। मंगलवार के दिन वायव्य दिशा में यात्रा करना वारशूल का कारण बनता है अत: इस दिशा में यात्रा से बचना चाहिए। मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा में यात्रा करना अशुभ होता है क्योंकि इस दिन इस दिशा में वार शूल लगता है। बुधवार और शनिवार को इशान यानी उत्तर पूर्व दिशा में यह शूल लगता है अत: इस दिशा में यात्रा करने से बचना चाहिए।
7.योग (Yoga):
यात्रा के संदर्भ में योगों का आंकलन भी आवश्यक होता है। अगर यात्रा के दिन निम्न अशुभ योग हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए। जैसे व्यातिपात (Vyatipat),
8.चन्द्रनिवास (Chandra Nivas)
चन्द्रनिवास में देखा जाता है कि चन्द्रमा किस दिशा में हैं (In which directon Moon is situated in Chandra Nivas) । जिस दिशा में चन्द्रमा होता है उस दिशा में यानी सम्मुख दिशा में और दाहिने दिशा में यात्रा करना शुभ होता है एवं पीछे और बायीं ओर यात्रा करना ठीक नहीं माना जाता है। इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं माना कि आज चन्द्रमा पूर्व दिशा में है और आपको पूर्व में जाना है तो यात्रा के लिए यह शुभ स्थिति है, अगर आप दक्षिण में जाना चाहें तो इसके लिए भी चन्द्र शुभ है क्योकि पूर्व दिशा से दायीं ओर दक्षिण दिशा है।
चन्द्र निवास के अन्तर्गत चन्द्रमा अगर मेष, सिंह अथवा धनु राशि में है तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा आज पूर्व दिशा में हैं। अगर चन्द्रमा वृष, कन्या अथवा मकर राशि में हैं तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा दक्षिण दिशा में विराजमान है। मिथुन, तुला या कुम्भ में से किस भी राशि में चन्द्र है तो इसका अर्थ यह हुआ कि चन्द्रमा पश्चिम दिशा में है। कर्क, वृश्चिक और मीन राशि में से किसी में चन्द्र है तो यह माना जाता है कि चन्द्रमा उत्तर दिशा में विराजमान है।
9.सम्मुख शुक्र (Sammukh Shukra)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यात्रा के लिए सम्मुख शुक्र का त्याग किया जाना चाहिए अर्थात जिस दिशा में आपको यात्रा करनी है उस दिशा में अगर शुक्र स्थित है तो सम्मुख शुक्र लगता है । सम्मुख शुक्र यात्रा के लिए अशुभ होता है। सम्मुख शुक्र कैसे होता है अब इसे देखिए जब शुक्र गोचरवश कृतिका से आश्लेषा नक्षत्र में हो तो पूर्व दिशा में, मघा से विशाखा नक्षत्र तक दक्षिण में, अनुराधा से श्रवण तक पश्चिम में तथा घनिष्ठा से भरणी नक्षत्र में होने पर उत्तर दिशा में होता है। उपरोक्त बातों से निष्कर्ष निकलता है कि गोचरवश शुक्र जिस नक्षत्र में पहुंचता है उस नक्षत्र की दिशा में यात्रा करने से सम्मुख शुक्र लगता है।
10.परिघ दण्ड (Parigh Dand)
ज्योतिषशास्त्र कहता है कि यात्रा सफल और अनुकूल फलदायी हो इसके लिए मुहुर्त का विचार करते हुए परिघ दण्ड का भी आंकलन करना चाहिए। परिघ दण्ड का आंकलन किस प्रकार किया जाता है और यह किस प्रकार से यात्रा में शुभाशुभ प्रभाव डालता है आइये इसे समझें, गोचरवश चन्द्रमा घनिष्ठा से आश्लेषा नक्षत्र में भ्रमण करता है तो पूर्व और उत्तर दिशा में यात्रा करना शुभ होता है जबकि दक्षिण व पश्चिम दिशा में अशुभ फल देता है। जब चन्द्रमा मघा से श्रवण नक्षत्र तक गोचरवश जब भ्रमण करता है तब पश्चिम और दक्षिण दिशा में शुभ तथा पूर्व और उत्तर दिशा में अशुभ फल देता है, इसे परिघ दण्ड कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र मे बताया गया है कि यात्रा में सम्मुख और बांयी तरफ की योगिनी से बचना चाहिए. दाहिने और पीछे की योगिनी शुभ मानी जाती है. योगिनी का निवास अलग अलग तिथियों मे अलग अलग दिशा में होता है, आइये देखें कि योगिनी किस तिथि को किस दिशा में रहती है।
12.तारा शुद्धि (Tara Sudhhi)
आप यात्रा पर जा रहे हैं तो इस बात का ख्याल रखें कि जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है उससे पहला, तीसरा, पांचवां, सातवां, दशवां, बारहवां, चौदहवां, सोलवां, उन्नीसवां, इक्कीसवां, तेइसवां और पच्चीसवां नक्षत्र हो तो उस दिन यात्रा नहीं करें । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इन नक्षत्रों में यात्रा करना नुकसानदेय हो सकता है। अगर आप इन नक्षत्रों का यात्रा में त्याग करें तो उत्तम रहता है इससे आपको तारा दोष से नहीं लगता है, इसे तारा शुद्धि के नाम से भी जाना जाता है (You should avoid Tara Dosha for Travel)।
13.चन्द्र शुद्धि (Chandra Sudhhi)
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यात्रा पर निकलने से पहले चन्द्रमा की शुद्धि का भी विचार करना चाहिए (You should consider for chandra sudhhi when your are going for Yatra)। आपके जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में था उस राशि से तीसरा, छठा, दसमा, ग्यारहवां, पहला और सातवें राशि में अगर चन्द्र है तो यह शुभ होता है। यात्रा के दिन अगर चन्द्रमा गोचरवश चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश राशि में हो तो यात्रा स्थगित कर देना चाहिए, इससे चन्द्र दोष नहीं लगता है (In transit of Moon situated in Fourth, Eight or Twelveth House so you are free from Chandra Dosha)
14.घात (Ghat)
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी राशि के अनुसार जो घात मास आता है उसका यात्रा के समय विशेष रूप से त्याग करना चाहिए(As per your Sign Avoid travel in month of Ghat)। मान लीजिए व्यक्ति की राशि सिंह है तो उसके लिए फाल्गुन मास, शनिवार मकर राशि का चन्द्रमा, मूल नक्षत्र तथा घनिष्ठा नक्षत्र का प्रथम चरण व तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी तिथि यात्रा के लिए शुभ नहीं माना जाता। इस राशि के जातक को मकर लग्न में भी यात्रा से बचना चाहिए अन्यथा घात लगता है। इसी प्रकार से अन्य राशियों के जातक को भी घात का आंकलन करके यात्रा करना चाहिए।
15.लग्न (Lagna)
यात्रा के लिए आप जिस दिशा में जाना चाहते हैं, उस दिशा से सम्बन्धित लग्न या राशि के होने पर लाभदायक स्थिति रहती है इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं, यदि कोई व्यक्ति पूर्व दिशा की यात्रा करना चाहता है तो मेष, सिंह, धनु राशी का लग्न एवं राशि शुभफलदायक रहती है। इसी प्रकार दक्षिण दिशा में यात्रा करने के लिए वृष, कन्या व मकर एवं पश्चिम दिशा में यात्रा करने के लिए मिथुन, तुला एवं उत्तर दिशा में यात्रा करने के लिए कर्क, वृश्चिक एवं मीन लग्न व राशि उत्तम होता है।
जिस व्यक्ति का जो लग्न एवं राशि होती है यदि यात्रा के लिए वही लग्न व राशि का प्रयोग किया जाए तो वह भी अनुकूल फल देता है (You can travel in same lagna and sign for favourable result), यहां इस तथ्य को समझने के लिए हम एक उदाहरण देख सकते हैं, मान लीजिए किसी व्यक्ति का लग्न मेष एवं राशि धनु है, यदि वह व्यक्ति मेष लग्न और धनु राशि या धनु लग्न और धनु राशि या धनु लग्न और मेष राशि में यात्रा करता है तो यात्रा में सफलता मिलने की संभावना अधिक रहती है।
यात्रा के संदर्भ में वर्गोत्तर लग्न और वर्गोत्तम चन्द्र अनुकूल रहता है (Vargottar Lagna or Vargottam Chandra is good for Travel), ऐसे में यदि केन्द्र (1,4,7,10 एवं त्रिकोण (5,9) में शुभ ग्रह तथा 3,6,11भाव में पाप ग्रह हों तो अत्यंत शुभ होता है।
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