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ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों,नक्षत्रों आदि की गति,परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।ज्योतिषशास्त्र लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर रहा हूँ।

ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी - कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या - क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क - वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र।

ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति "विद" धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।

ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।

पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर''ज्योतिषामयनंयक्षुरू''ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर '' प्रभु-कृपा ''भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। 'दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।

दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचेभयात/भभोतजैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास

Friday 27 June 2014

तिलक



तिलक

भारतीय संस्कृति में किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से आरंभ होता है। कोई भी पूजा हो या अनुष्ठान बिना तिलक धारण किए आरंभ नहीं होती।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए यहां चंदन, रोली, कुंकुम, सिंदूर तथा भस्म तिलक लगाया जाता है। पूजा और भक्ति का एक प्रमुख अंग तिलक है।
तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका (नाक) के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं। इसे शिवनेत्र अर्थात कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है।
वैज्ञानिकों ने इसे पीनियल ग्रंथि नाम दिया है। प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि प्रकाश से इसका गहरा संबंध है। ध्यान-धारणा के माध्यम से साधक में जो प्रकाश उत्पन्न होता है इसे आज्ञाचक्र कहते हैं।
हमारे ऋषियों को यह तथ्य भली- भांति पता था, अतः उन्होंने तिलक करने की प्रथा को पूजा-उपासना के साथ-साथ हर शुभ कार्य से जोड़कर इसे धर्म-कर्म का एक अभिन्न अंग बना दिया, ताकि नियमित रूप से उस स्थान के स्पर्श से उसे तिलक लगाने का लाभ मिलता रहे।
तिलक और रेड ऑक्साइड
मांग के सिंदूर में उपस्थित लाल तत्त्व पारे का रेड ऑक्साइड होता है, जो कि शरीर के लिए लाभदायक है। मांग का सिंदूर एवं शुद्ध चंदन के प्रयोग से मुंह को झुर्रीरहित बनाता है। माग में सिंदूर लगाने से मस्तिष्क-संबंधी क्रियाएं नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट होते हैं लेकिन वर्तमान में जो केमिकल्स की बिंदिया( मांग का सिंदूर) चल पड़ी है वह लाभ के बजाय हानि करती है। ललाट पर नियमित रूप से तिलक करते रहने से मस्तिष्क के रसायनों सेराटोनिन व बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित रहता है, जिससे मनोभावों में सुधार आकर उदासी दूर होती है, सिरदर्द नहीं होता और बुद्धि तीव्र होती है।
तिलक लगाने की विधि
अमूमन चंदन, कुंकुम, हल्दी, यज्ञ की धूप, गौ-धूलि, तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी आदि का तिलक लगाया जाता है। चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। श्वेत और रक्त चंदन भक्ति के प्रतीक हैं।
कुंकुम में हल्दी का संयोजन होने से त्वचा को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है और मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप में हो जाता है। संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने में शुद्ध मिट्टी का तिलक महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। यज्ञ की भस्म का तिलक करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। ज्योतिषशास्त्र अनुसार, तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है।
वार के अनुसार तिलक
सोमवारः इस दिन के स्वामी ग्रह चन्द्रमा हैं। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह होता है इसे अनुकूल बनाए रखने के लिए श्रीखंड चंदन अथवा दही का तिलक करें। इससे मस्तिष्क शीतल और शांत रहता है।
मंगलवारः इस दिन मंगल ग्रह के प्रभाव में होता है। इस ग्रह का प्रतिनिधि रंग लाल है। उर्जा और कार्यक्षमता में वृ्द्धि के लिए मंगलवार के दिन रक्त चंदन अथवा सिंदूर का तिलक लगाना शुभ फलदायी रहता है।
बुधवारः इस दिन बुध ग्रह के प्रभाव में होता है। इसके स्वामी गणेश जी हैं। गणेश जी को सिंदूर का तिलक प्रिय है। इसलिए बुधवार के दिन सिंदूर लगाना चाहिए। इससे बौद्धिक एवं मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है।
गुरूवारः इस दिन के स्वामी धन के कारक ग्रह बृहस्पति हैं। गुरू को पीला रंग प्रिय है। प्रत्येक गुरूवार केसर, हल्दी, का तिलक लगाने से गुरू के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है। मन में सात्विक भाव बढ़ता है और आर्थिक समस्याओं में कमी आती है।
शुक्रवारः इस दिन के स्वामी शुक्र ग्रह हैं। शुक्रवार के दिन सिंदूर अथवा रक्त चंदन का नियमित तिलक दांपत्य जीवन के तनाव को दूर करने में सहायक होता। भौतिक सुख-सुविधों में वृद्धि के लिए भी यह लाभप्रद रहता है।
शनिवारः इस दिन के स्वामी ग्रह शनि महाराज हैं। इन्हें अनुकूल बनाए रखने के लिए शनिवार के दिन रक्त चंदन (लाल चंदन) का लेप करना चाहिए।
रविवारः इस दिन के स्वामी ग्रहों के राज सूर्य हैं। रविवार के दिन श्रीखंड चंदन अथवा रक्त चंदन लगाया जा सकता है।
 सात वार के सात विजयी तिलक
सोमवार : सोमवार का दिन भगवान शंकर का दिन होता है तथा इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन का कारक ग्रह माना गया है। मन को काबू में रखकर मस्तिष्क को शीतल और शांत बनाए रखने के लिए आप सफेद चंदन का तिलक लगाएं। इस दिन विभूति या भस्म भी लगा सकते हैं।
मंगलवार : मंगलवार को हनुमानजी का दिन माना गया है। इस दिन का स्वामी ग्रह मंगल है।मंगल लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन लाल चंदन या चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता में विकास होता है। इससे मन की उदासी और निराशा हट जाती है और दिन शुभ बनता है।
बुधवार : बुधवार को जहां मां दुर्गा का दिन माना गया है वहीं यह भगवान गणेश का दिन भी है।इस दिन का ग्रह स्वामी है बुध ग्रह। इस दिन सूखे सिंदूर (जिसमें कोई तेल न मिला हो) का तिलक लगाना चाहिए। इस तिलक से बौद्धिक क्षमता तेज होती है और दिन शुभ रहता है।
गुरुवार : गुरुवार को बृहस्पतिवार भी कहा जाता है। बृहस्पति ऋषि देवताओं के गुरु हैं। इस दिन के खास देवता हैं ब्रह्मा। इस दिन का स्वामी ग्रह है बृहस्पति ग्रह।गुरु को पीला या सफेद मिश्रित पीला रंग प्रिय है। इस दिन सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए। हल्दी या गोरोचन का तिलक भी लगा सकते हैं। इससे मन में पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव होगा जिससे दिन भी शुभ रहेगा और आर्थिक परेशानी का हल भी निकलेगा।
शुक्रवार : शुक्रवार का दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का रहता है। इस दिन का ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है।हालांकि इस ग्रह को दैत्यराज भी कहा जाता है। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य थे। इस दिन लाल चंदन लगाने से जहां तनाव दूर रहता है वहीं इससे भौतिक सुख-सुविधाओं में भी वृद्धि होती है। इस दिन सिंदूर भी लगा सकते हैं।
शनिवार : शनिवार को भैरव, शनि और यमराज का दिन माना जाता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है शनि ग्रह।शनिवार के दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाना चाहिए जिससे भैरव महाराज प्रसन्न रहते हैं और किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने देते। दिन शुभ रहता है।
रविवार : रविवार का दिन भगवान विष्णु और सूर्य का दिन रहता है। इस दिन के ग्रह स्वामी है सूर्य ग्रह जो ग्रहों के राजा हैं।
इस दिन लाल चंदन या हरि चंदन लगाएं। भगवान विष्णु की कृपा रहने से जहां मान-सम्मान बढ़ता है वहीं निर्भयता आती है।

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