जानिए
कुंडली के 12 भाव
फलित ज्योतिष उस विद्या को
कहते हैं जिसमें मनुष्य तथा पृथ्वी पर, ग्रहों और तारों के
शुभ तथा अशुभ प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष शब्द का यौगिक अर्थ ग्रह
तथा नक्षत्रों से संबंध रखनेवाली विद्या है। इस शब्द से यद्यपि गणित (सिद्धांत) ज्योतिष का भी बोध होता है, तथापि साधारण
लोग ज्योतिष विद्या से फलित विद्या का अर्थ ही लेते हैं।जन्म पत्रिका क्या होती है?
जन्म पत्रिका क्या कहती है? इससे क्या जाना जा
सकता है? आइए जानते हैं आज इन्हीं प्रश्नों के उत्तर। जन्म
के समय किन ग्रहों की स्थिति किस प्रकार थी व कौन-सा लग्न जन्म के समय था जन्म
पत्रिका यही बताती है। जन्म-पत्रिका में बारह खाने होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
उपरोक्त कुंडली में प्रथम भाव लिया है, उसमें
जो भी नंबर हो उसे जन्म लग्न कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि उस भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को मिथुन, 4 को कर्क, 5 को सिंह, 6 को कन्या,
7 को तुला, 8 को वृश्चिक, 9 को धनु, 10 को मकर, 11 को कुंभ
व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। इसी प्रकार पहले घर को प्रथम
भाव कहा जाएगा, इसे लग्न भी कहते हैं।
कुंडली वह चक्र है, जिसके द्वारा किसी इष्ट काल में राशिचक्र की स्थिति का
ज्ञान होता है। राशिचक्र क्रांतिचक्र से संबद्ध है, जिसकी
स्थिति अक्षांशों की भिन्नता के कारण विभिन्न देशों में एक सी नहीं है। अतएव राशिचक्र
की स्थिति जानने के लिये स्थानीय समय तथा अपने स्थान में होनेवाले राशियों के उदय
की स्थिति (स्वोदय) का ज्ञान आवश्यक है। हमारी घड़ियाँ किसी एक निश्चित याम्योत्तर
के मध्यम सूर्य के समय को बतलाती है। इससे सारणियों की, जो
पंचागों में दी रहती हैं, सहायता से हमें स्थानीय स्पष्टकाल
ज्ञात करना होता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल कहते हैं। इष्टकाल में जो राशि
पूर्व क्षितिज में होती है उसे लग्न कहते हैं। तात्कालिक स्पष्ट सूर्य के ज्ञान से
एवं स्थानीय राशियों के उदयकाल के ज्ञान से लग्न जाना जाता है। इस प्रकार राशिचक्र
की स्थिति ज्ञात हो जाती है। भारतीय प्रणाली में लग्न भी निरयण लिया जाता है।
पाश्चात्य प्रणाली में लग्न सायन लिया जाता है। इसके अतिरिक्त वे लोग राशिचक्र
शिरोबिंदु (दशम लग्न) को भी ज्ञात करते हैं। भारतीय प्रणाली में लग्न जिस राशि में
होता है उसे ऊपर की ओर लिखकर शेष राशियों को वामावर्त से लिख देते हैं। लग्न को प्रथम
भाव तथा उसके बाद की राशि को दूसरे भाव इत्यादि के रूप में कल्पित करते हैं1
भावों की संख्या उनकी कुंडली में स्थिति से ज्ञात होती है। राशियों
का अंकों द्वारा तथा ग्रहों को उनके आद्यक्षरों से व्यक्त कर देते हैं। इस प्रकर
का राशिचक्र कुंडली कहलाता है। भारतीय पद्धति में जो सात ग्रह माने जाते हैं,
वे हैं सूर्य, चंद्र, मंगल
आदि। इसके अतिरिक्त दो तमो ग्रह भी हैं, जिन्हें राहु तथा
केतु कहते हैं। राहु को सदा क्रांतिवृत्त तथा चंद्रकक्षा के आरोहपात पर तथा केतु
का अवरोहपात पर स्थित मानते हैं। ये जिस भाव, या जिस भाव के
स्वामी, के साथ स्थित हों उनके अनुसार इनका फल बदल जाता है।
स्वभावत: तमोग्रह होने के कारण इनका फल अशुभ होता है। पाश्चात्य प्रणाली में (1)
मेष, (2) वृष, (3) मिथुन,
(4) कर्क, (5) सिंह, (6) कन्या, (7) तुला, (8) वृश्चिक,
(9) धनु, (10) मकर, (11) कुंभ तथा (12) मीन राशियों के लिये क्रमश:
निम्नलिखित चिह्न हैं :
1 2 3 4
5 6 7 8 9 10 11 12
(1) बुध, (2) शुक्र, (3) पृथ्वी,
(4) मंगल, (5) गुरु, (6) शनि, (7) वारुणी, (8) वरुण,
तथा (9) यम ग्रहों के लिये क्रमश: निम्नलिखित
चिह्न :
1 2 3 4
5 6 7 8 9
तथा सूर्य के लिये और चंद्रमा के लिये प्रयुक्त होते हैं।
भावों की स्थिति अंकों से व्यक्त की जाती है। स्पष्ट लग्न को
पूर्वबिंदु (वृत्त को आधा करनेवाली रेखा के बाएँ छोर पर) लिखकर, वहाँ
से वृत्त चतुर्थांश के तुल्य तीन भाग करके भावों को लिखते हैं। ग्रह जिन राशियों
में हो उन राशियों में लिख देते हैं। इस प्रकार कुंडली बन जाती है, जिसे अंग्रेजी में हॉरोस्कोप (horoscope) कहते हैं। यूरोप
में, भारतीय सात ग्रहों के अतिरिक्त, वारुणी,
वरुण तथा यम के प्रभाव का भी अध्ययन करते हैं।
प्राचीन आर्य ऋषियों , महर्षियों और अन्य ज्योतिषियों ने पूरे भचक्र के
360 डिग्री को बारह भागों में यानि 30.30 डिग्री
में विभाजित कर दिया था , जिसका फलित ज्योतिष में बहुत ही
महत्वपूर्ण स्थान है , क्योंकि इन बारहों भागों का संबंध
मनुष्य के अलग.अलग प्रकार के सुख और दुख से है। इन बारहों भागों को जीवन के जिन
जिन पक्षों का आधिपत्य दिया गया है , वे सत्यता की कसौटी पर
बिल्कुल खरे उतरे हैं। सभी प्रकार की भविष्यवाणियां इसी वर्गीकरण के आधार पर की
जाती है और इस वर्गीकरण को लेकर विश्वभर के ज्योतिषियों में कोई बड़ा विवाद नहीं
है। हमारे लिए यह बड़े आश्चर्य की बात है कि प्राचीनकाल में जहां सभी प्रकार के
वैज्ञानिक संसाधनों का अभाव था , राशियों के 30.30 डिग्री के वर्गीकरण और उनसे संबंधित तथ्यों की इतनी सटीक जानकारी फलित
ज्योतिष के हिस्से में कैसे आ जुड़ी ? निश्चित ही यह
प्राचीनकाल के ज्योतिषियों के निरंतर अध्ययन.मनन और एकाग्रता का परिणाम होगा। किसी
जन्मकुंडली का
1.प्रथम भाव- बचपन में शारिरीक स्थिति की जानकारी देता है , किन्तु बढ़ती उम्र के साथसाथ इससे शरीर के साथसाथ
आत्मविश्वास , अन्य व्यक्तिगत गुण और अनुभव भी इसी भाव से
देखे जाते हैं।
2.द्वितीय भाव- से बचपन में कौटुम्बिक स्थिति को देखा जाता है
, किन्तु बढ़ती उम्र के साथ साथ इससे धन ,कोष
, साख , परिवार आदि की स्थिति भी।
3.तृतीय भाव- बचपन में भाई , बहन
से अच्छे या बुरे संबंध का बोध कराता है , पर बढ़ती उम्र के
साथ यह पौरूष , पराक्रम , अनुयायी
कार्यकर्त्ताओं आदि की भी।
4.चतुर्थ भाव- बचपन में माता या माता के समान किसी गोद का अहसास देता है , जबकि
उम्र बढ़ने के साथ साथ हर प्रकार की संपत्ति और स्थायित्व आदि की मजबूती इसी भाव
से देखी जाती है।
5.पंचम भाव- बालक के तर्कवितर्क शक्ति को बतलाता है , जबकि उम्र बढ़ने के साथसाथ शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यता
और संतान की स्थिति भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
6.षष्ठ भाव- किसी बच्चे के रोगप्रतिरोधक स्थिति को बतलाता है , जबकि बढ़ती उम्र के साथ रोग के साथ साथ ऋण और शत्रु
से लड़ने की क्षमता या प्रभाव की स्थिति भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
7सप्तम भाव- एक बच्चे के लिए उसके दोस्तों को परिभाषित करता है , पर बड़े होने के बाद व्यवसाय में साथ देने वाले
भागीदार और विवाह के पश्चात पति या पत्नी की स्थिति की जानकारी इसी भाव से पायी जा
सकती है।
8.अष्टम भाव- से बालक के जीवन जीने के स्तर का पता चलता है ,
परंतु बड़े होने के बाद दिनचर्या और जीवन जीने के ढंग का पता भी इसी
भाव से चलता है।
9.नवम् भाव- से किसी बच्चे का भाग्य देखा जाता है ,जबकि बड़े होने के बाद भाग्य के साथ साथ स्वभाव
, गुण , धर्म और संयोग भी।
10.दशम् भाव -से बच्चे का पिता पक्ष देखा जाता है ,जबकि बड़े होने के बाद कर्म, विचार,
पद और प्रतिषठा का माहौल भी।
11.एकादश भाव- बच्चे के लिए सामान्य लाभ का द्योतक है , जबकि बड़े के लिए अभीष्ट और मंजिल का।
12.-द्वादश भाव- किसी बालक के लिए सामान्य प्रकार के खर्च का संकेत
देता है , उम्र में वृद्धि के साथ साथ इससे क्रयशक्ति
, हानि तथा बाह्य व्यक्ति या स्थान से संबंध भी देखा जाता है।
No comments:
Post a Comment