श्री गणेशजी

ज्योतिष

मेरा गाँव तोगावास

आयुर्वेदिक घरेलु उपाय

तंत्र, मंत्र, यन्त्र,साधना

माँ दुर्गा

वास्तु शास्त्र

मेरे फ़ोटो एल्बम

राजस्थानी प्रेम कथाएँ

ज्ञान गंगा की धारा

श्री शिव

धार्मिक कथाएं

हास्य पोथी

फल खाएं सेहत पायें

राजपूत और इतिहास

श्री हनुमानजी

लोकदेवता

व्रत और त्योहार

सभी खुलासे एक ही जगह

चाणक्य

ज्योतिष शास्त्र - एक परिचय

सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों,नक्षत्रों आदि की गति,परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है।ज्योतिषशास्त्र लेकर हमारे समाज की धरण है कि इससे हमें भविष्य में घटनेवाली घटनाओं के बारे में आगे ही पता जाता है। वास्तव में ज्योतिषशास्त्र का रहस्य अथवा वास्तविकता आज भी अस्पष्ट है, या इस विद्या पर अन्धविश्वास हमें हमेशा ही भटकता रहता है। इसी विषय पर तर्कपूर्ण विचार प्रकट कर रहा हूँ।

ज्योतिषशास्त्र वज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते हैं, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवों की बातें सुनते हैं। उन बातों मेंज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी में सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं में थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओं में कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी - कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियों कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष में क्या - क्या तर्क देते हैं ? यह तर्क कितना सही है ?ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते हैं? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क - वितर्क हो रहा है ; उस बारे में जानना सबसे पहले जरुरी है। तो आइये , देखें क्या कहता हैंज्योतिषशास्त्र।

ज्योतिष को चिरकाल से सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । वेद शब्द की उत्पति "विद" धातु से हुई है जिसका अर्थ जानना या ज्ञान है ।ज्योतिष शास्त्रतारा जीवात्मा के ज्ञान के साथ ही परम आस्था का ज्ञान भी सहज प्राप्त हो सकता है ।

ज्‍योतिष शास्‍त्र मात्र श्रद्धा और विश्‍वास का विषय नहीं है, यह एक शिक्षा का विषय है।

पाणिनीय-शिक्षा41 के अनुसर''ज्योतिषामयनंयक्षुरू''ज्योतिष शास्त्र ही सनातन वेद का नैत्रा है। इस वाक्य से प्रेरित होकर '' प्रभु-कृपा ''भगवत-प्राप्ति भी ज्योतिष के योगो द्वारा ही प्राप्त होती है।

मनुष्य के जीवन में जितना महत्व उसके शरीर का है, उतना ही सूर्य, चंद्र आदि ग्रहों अथवा आसपास के वातावरण का है। जागे हुए लोगों ने कहा है कि इस जगत में अथवा ब्रह्माण्ड में दो नहीं हैं। यदि एक ही है, यदि हम भौतिक अर्थों में भी लें तो इसका अर्थ हुआ कि पंच तत्वों से ही सभी निर्मित है। वही जिन पंचतत्वों से हमारा शरीर निर्मित हुआ है, उन्हीं पंच तत्वों से सूर्य, चंद्र आदि ग्रह भी निर्मित हुए हैं। यदि उनपर कोई हलचल होती है तो निश्चित रूप से हमारे शरीर पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा,क्योंकि तत्व तो एक ही है। 'दो नहीं हैं। o का आध्यात्मिक अर्थ लें तो सबमें वहीं व्याप्त है, वह सूर्य, चंद्र हों, मनुष्य हो,पशु-पक्षी, वनस्पतियां,नदी, पहाड़ कुछ भी हो,गहरे में सब एक ही हैं। एक हैं तो कहीं भी कुछ होगा वह सबको प्रभावित करेगा। इस आधार पर भी ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह अनायास नहीं है कि मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा चलते हैं।

दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र में रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने में समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार में समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण हैं। वह भलीभांति जानते हैं कि किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता। कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते हैं या कर सकते हैं। इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचेभयात/भभोतजैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है।

लेखक एवं संकलन कर्ता: पेपसिंह राठौड़ तोगावास

Friday 25 July 2014

आप अपने जीवन में किस प्रकार से जीविका चलायेगे


आप अपने जीवन में किस प्रकार से जीविका चलायेगे



आप नौकरी करेगे , यदि निम्न स्थिति आपकी कुन्डली में हो ?

 

१. यदि व्यय भाव स्वामी (१२) भाव स्वामी लग्न ,
द्वितीय , पंचम , नवम अथवा दशम भाव मे हो, तो जातक
नौकरी करता है।
आप निम्न सरकारी नौकरी में सफल हो सकते है :-
(र) यदि बुध बलवान होकर ६ थेभव से सम्बंधित
होतो, जातक कंप्यूटर आपरेटर होता है।
(ल) यदि १० वे भाव का स्वामी मंगल हो तो , जातक
सफल कुशल प्रशासक या सैनिक अधिकारी होता है ,
यही फळ तब भी होता है, तब मंगल १० वे हो।
(व) यदि २ रे भाव में शनि होतो , जातक सैनिक
अधीकारी होता है।
(श) यदि गुरु , चन्द्र , बुध अथवा शुक्र
की युति होतो जातक अध्यापक बनता है।
( यदि बुध, शनि की युति हो तो जातक शोध
कर्ता होता है।
आप अपने जीवन में किस प्रकार से जीविका चलायेगे ?
इसके कुछ योग निम्नानुसार है
३६. यदि चन्द्र , और बुध की युति होतो, जातक
कवि, पत्रकार लेखक बनता है।
३७. यदि सूर्य, शुक्र की युति होतो, जातक कवि,
नाटककार , लेखक, या साहित्यकार होता है।
३८. गुरू , शनि की युति जातक को बुद्धीजीवी बनाती है ,
किन्तु आय अधिक नहीं होती है।
३९. यदि बुध सिंह राशी का हो और उस पर शुक्र
की दृष्टी हो जो जातक को सरकारी नौकरी मिलती है।
४०. यदि बुध द्वितीय भाव में शुक्र के साथ होतो,
तथा उन पर शुभ ग्रह की दृष्टी हो, तो जातक व्यापार
करता है।
४१. चन्द्र , गुरू की युति हो तथा किसी शुभ ग्रह
की दृष्टी अथवा युति हो तो जातक अध्धयापन कार्य
करता है।
४२. यदि शुक्र, मंगल की युति हो तथा वह सूर्य से दृष्ट
होतो, जातक शल्य - चिकित्सक होता है।
४३. शनि , बुध की युति जातक को सम्पादक, मुद्रक,
या गणितज्ञ बनाती है।
४४. चन्द्र, शुक्र की युति पर सूर्य की दृष्टी जातक
को वैद्य , हकीम या डाक्टर बनाती है।
४५. चन्द्र, राहू की युति जातक को कूटनीति के
द्वारा उच्च पद मिलता है।
आपसे निवेदन है कि अन्य
ग्रहों की युति से फल बदल जाता है यह बात ध्यान रखे .
आज हम आपके सामने ऐसे ग्रहों और योगों के बारे में बताएंगे
जो वकील बनने में सहायक सिद्ध होते हैं ।
वकालत से जुड़ा भाव मुख्यतः दूसरा (वाणी) , सप्तम (कानून,
मुकदम्मा ) तथा नवम भाव तथा कर्म भाव होता है
गुरु,मंगल,शुक्र,बुध, और शनि वकालत के मुख्य ग्रह हैं ।
नीचे महात्मा गांधी जी की कुंडली दी गयी है । सप्तमेश
बलि मंगल लगन में शुभ ग्रहों के साथ है ।पंच्मेश
शनि बुद्धि भाव में बैठा हुआ है तथा नवमेश बुध लगन मे
सप्तमेश मंगल के साथ बैठा हुआ है । यही कारण है
की गांधी जी ने कानून की पढ़ाई की और बैरिस्टर के रूप में
प्रैक्टिस भी की ।
अतः एक अच्छा वकील बनने के लिए वाणी,ज्ञान,तर्क करने
की क्षमता और विवेक का होना अति जरूरी है और ये सब
गुरु,बुध,मंगल,शनि, और शुक्र की अच्छी स्थिति ही दे सकती है
। जितने प्रबल ये ग्रह होंगे और जितनी अधिक जातक मेहनत
आई . आई . टी . तथा अन्य उच्च स्तरीय संस्थाओं में प्रवेश तथा इंजीनीयर बनने के योग :-

७. यदी मीन लग्न की कुंडली में शुक्र लग्न में उच्च (मीन राशी १ २ ) का हो, चतुर्थ (४ ) भाव में राहू , तथा दशम भाव (१ ० ) में केतू उच्च राशी का , दुसरे भाव में उच्च का सूर्य (मेष राशी १ ) का मंगल +शनी ७ वे भाव में हो तथा गुरु, चंद्रमा अच्छी स्थीती में होकर सूर्य को बल दे तो , जातक आई .आई . टी . के पर्वेश में सफल होकर उच्च स्तरीय इंजीनीयर बनता है.

८. यदी गुरु, बुध शुक्र, मंगल, शनी , सूर्य केंद्र में हो तथा चंद्रमा उच्च का होतो, जातक उच्च स्तरीय इंजीनीयर बनता है .

९. यदी चंद्रमा , बुध , तथा गुरु को कीसी भी भाव में बैठकर शुक्र अपनी पूर्ण द्रष्टी से देखे , तो जातक उच्च स्तरीय इंजीनीयर बनता है .

१ ० . यदी बुध, शुक्र , मंगल, शनी , सूर्य केंद्र में हो तथा १ २ वे भाव में गुरु या चंद्रमा या केतू उच्च के होकर स्थीत हो तो जातक उच्च स्तरीय इंजीनीयर बनता है .

१ १ . यदी लग्नेश केंद्र में हो तथा शुभ ग्रह या मीत्र गृह से द्रष्ट हो तो जातक उच्च स्तरीय इंजीनीयर बनता है.
क्या वीदेश जाना है :- 

१ १ . कुम्भ लग्न :-(a ) यदी कुंडली में ८ वे , ९ वे , १ २ वे या लग्न भाव में बुध +शनी या शुक्र +शनी अथवा चंद्रमा +शनी की युती होतो जातक अनेकों बार वीदेश यात्रा करता है , कीन्तू यह सब ५ ४ - ५ ६ साल की आयु के बाद होता है. 

(b ) शुक्र , बुध, शनी यदी इनकी युती या द्रष्टी सम्बन्ध होतो, जातक कई बार वीदेश यात्रा करता है . 

(c ) यदी १ ० वे भाव में शुक्र हो तो , जातक शौकीया तौर पर वीदेश यात्रा करता है .

(d ) बुध यदी स्वग्रही होतो , वीदेश यात्रा करता है . 

(e ) मंगल १ २ वे भाव में तथा शुक्र ८ वे भाव में हो तो जातक वीदेश यात्रा करता है . 

१ २ . मीन लग्न में  a ) यदी मंगल १ २ वे भाव में या ८ वे भाव में , शुक्र ९ वे , १ ० वे, अथवा १ २ वे भाव में या शनी ८ वे या ९ वे भाव में होतो, जातक वीदेश यात्रा करता है . 

(b ) शुक्र+मंगल, या शुक्र+शनी , अथवा मंगल+शनी की युती केंद्र या त्रिकोण में होतो, जातक वीदेश यात्रा करता है , केवल तीनों की युती भी वीदेश यात्रा के अवसर दे देती है .

(c ) चन्द्रमा यदी ८ वे भाव में , शुक्र लग्न में होतो , जातक मौज - मस्ती के लीये वीदेश यात्रा करता है. 

(d ) गुरु १ २ वे , ८ वे या ९ वे भाव में हो , तथा शुक्र, मंगल , शनी लग्न भाव में होतो, जातक वीदेश यात्रा करता है . 

(e ) शुक्र १ २ वे भाव में, तथा गुरु का युती या द्रष्टी प्रभाव ८ वे , ९ वे , १ ० , या १ २ वे भाव पर होतो, जातक अनेक बार वीदेश यात्रा करता है .

No comments:

Post a Comment